Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (वार्ता) आजीविका के साधन (समृद्धी) वृद्धिंगत होने पर (सर्वाः) समस्त प्रजा व (राज्ञः) राजा की समृद्धि [भवति होती है ।
आजीविका के साधन उपयुक्त और पर्याप्त रहते हैं तो राजा-प्रजा दोनों ही खुशहाल, बलवान, स्व स्व कार्य निष्ठ होते हैं ।
विशेषार्थ :- राजा का सुख-दुःख प्रजा के दुःख-सुख के अनुसार होता है । शुक्र नामक विद्वान का कथन विचारणीय है:
कृषि द्वयं वणिज्याश्च यस्य राष्ट्रे भवन्त्यमी । धर्मार्थकामा भूपस्य तस्य स्युः संख्यया बिना ॥
अर्थ :- जिस राजा के राज्य में शरत् और ग्रीष्म ऋतु में खेती की फसल अच्छी होती है और व्यापार की उन्नति होती रहती है उसे असंख्यात धर्म, अर्थ और भोगोपभोगों की उपलब्धि होती है । अभिप्राय यह है कि राज्य
और राजा का उत्थान-पतन प्रजा के उत्थान-पतन के अनुसार होता है । गृहस्थ के सांसारिक सुखों के समान :
तस्य खलु संसार सुखं यस्य कृषिर्धेनवः शाकवाटः समन्युदपानं च ॥३॥ अन्वयार्थ :- (यस्य) जिस गृहस्थ घर (कृषिः) खेती (धेनवः) गायें (शाकवाट:) शाक-तरकारी की वाटिका (च) और (सद्यनि) घरांगन में (उदपानम्) कूप [अस्ति] है (तस्य) उसके (खल) निश्चय से (संसार सुखम्) सांसारिक सुख [भवति] होता है ।।3॥
जिस घर में गृहस्थ के खेती पर्याप्त होती हो, शाक-भाजी तरकारी के लिए सुन्दर वाटिका हो और घर में कूप हो उसे सांसारिक सुख यथार्थ प्राप्त है ऐसा समझना चाहिए ।
विशेषार्थ :- भोजन, आवास और वस्त्र मानव की मुख्य आवश्यकताएँ हैं । संसार में इनकी जिसे उपलब्धि होती है उसे सुखी माना जाता है । शुक्र विद्वान ने भी इस विषय में लिखा है :
कृषि गोशाक वाटिकाश्च जलाश्रयसमन्विताः ।
गृहे यस्य भवन्त्येते स्वर्गलोकेत तस्य किम् ॥ अर्थ :- जिस गृहस्थ के यहाँ खेती, गाय-भैंस धन पालन-पोषण, एवं फल-तरकारी की वाटिका-उद्यान हो और स्वयं का कूप भी रहे तो वह घर व परिवार सुखी होता है उसे स्वर्ग से क्या प्रयोजन ? अर्थात् भूमि पर ही स्वर्ग समान सुख-शान्ति प्राप्त होती है । फिर स्वर्ग सुखों से क्या लाभ ? कुछ भी नहीं 12 ॥ फसल काल में धान्य संग्रह न करे तो नृप की हानि :
विसाध्यराजस्तंत्र पोषणे नियोगिना मुत्सवो महान् कोशक्षयः ॥4॥
अन्वयार्थ :- (विसाध्यराज्ञः) धान्य संग्रह विहीन राजा को (तंत्रपोषणे) सेना का पोषण में कष्ट (नियोगिनाम)
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