Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
................. गीशिवा याचार- -- "अवश इन्द्रियों का कुफल"
नाजितेन्द्रियाणां काऽपि कार्यसिद्धिरस्ति ।।7।। अन्वयार्थ :- (येषाम्) जिनकी (इन्द्रियाणाम्) इन्द्रियाँ (काऽपि) कोई भी (आजता) वश नहीं हैं (तेषाम्) उनका (कार्य) काम (सिद्धिः) सफल (न) नहीं होता ।
जो पुरुष अपनी इन्द्रियों पर संयम की लगाम नहीं लगा सकता, वह किसी भी कार्य में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है ।
विशेषार्थ :- जिस पुरुष की कर्णेन्द्रिय संगीत श्रवण में संलग्न है, चक्षु नाना रंगीन चित्रों को निहारने में लगी रहती है, रसना चट-पटे, मधुरादि रसों के आस्वादन में दत्त चित्त हैं, घ्राण नाना सुगन्धित तैल, इत्र, पुष्पादि चयन में लगी है और स्पर्शनेन्द्रिय कामसेवन में आसक्त है तो भला उसे धर्म ध्यान करने का अवसर किस प्रकार मिल सकता है । इन्द्रियाँ जाल हैं इनके फन्दे में फंसा व्यक्ति हिताहित का विचार करने में समर्थ नहीं हो सकता वह तो विषय-भोग की सामग्रियों को संचय में ही लगा रहता है । प्रियाओं के साज-श्रृंगार, आलिंगन के इच्छुक व लावण्य के लोलुपी भ्रमर के समान उसी में जीवन खपा देते हैं । अन्य कार्यों के सम्पादन का अवसर ही नहीं प्राप्त होगा । अत: इन्द्रियविजयी बनना चाहिए । इन्द्रियजेता ही आत्मविजेता होता है । शक्र ने भी कहा है -
यस्य तस्य च कार्यस्य सफलस्य विशेषतः ।
क्षिप्रमकि यमाणस्य कालः पिवति तत्फलम् अर्थ :- यदि मनुष्य उत्तम फल वाले शरीर को शीघ्रता से न कर उसमें विलम्ब कर देवे तो समय उस कार्य के फल को पी लेता है अर्थात् फिर वह कार्य सफल नहीं हो पाता । एक ऋषिपुत्रक नामक विद्वान ने भी कहा है -
स्वकृतेषु विलम्बन्ते विषयासक्त चेतसः ।
क्षिप्रमकि यमाणेषु तेषु तेषां न तत्फलम् ।।1।। अर्थ :- विषयों में आसक्त पुरुष अपने आवश्यक कार्यों में विलम्ब कर देते हैं, इससे शीघ्रता न करने से उन्हें उनका फल नहीं मिलता ॥
अतः नैतिकाचार प्रतिपालक सत्पुरुष को विषयरूपी भयानक वन में दौड़ने वाला इन्द्रियरूपी हाथियों को जो कि मन को विक्षुब्ध-व्याकुल करने वाले हैं । सम्यग्ज्ञानरूपी अंकुश से वश में करना चाहिए । 'मुख्यता से मन से अधिष्ठित इन्द्रियाँ विषयों में प्रवृत्त हुआ करती हैं इसलिए मन को वश में करना ही जितेन्द्रित्व कहा गया है। क्योंकि विषयों में अन्ध मनुष्य भयंकर विपत्तिगर्त में पड़ता है । विषय लोलुपता का त्याग करना चाहिए ।