Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नोति वाक्यामृतम् । तप का सार है । आचार्य कहते हैं "तपसा निर्जरा च" तप के द्वारा संवर और निर्जरा होती है । तप के द्वारा समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं -
सर्वेषामेव कामानां सुसिद्धौ साधनं तपः । अतएव तपस्यार्थं यतन्ते सर्व मानवाः ।।5॥
कु.का. अर्थ :- तप समस्त इच्छाओं का पूरक होता है । यह यथेष्ट फल देने में सुसिद्ध है, इसीलिए संसार में समस्त भव्यात्माएँ तप करने में प्रयत्न करते हैं । जिन्होंने तप बल से शक्ति और सिद्धि प्राप्त कर ली है वे मृत्यु को भी परास्त कर अमर बन जाते हैं । कहा है -
यहूरं यदुराराध्यं यच्च दूरं व्यवस्थितम् ।
तत्सर्व तपसा साध्यं तपो हि दुरितक्रमम् ।। संसार में जो दूर है, जिसे दुस्साध्य समझा जाता है जो अगम्य स्थान में स्थित है वह समस्त पदार्थ तप के द्वारा उपलब्ध हो जाता है, अतः "इन्द्रिय निरोधस्तपः या इच्छा निरोधस्तपः" सर्वपापों का नाशक और सर्वाभ्युदय दायक होता है । प्रत्येक भव्यात्मा को यथायोग्य तप करना चाहिए ।
तपश्चरण की भाँति दान भी गृहस्थाश्रम व यत्याश्रम का प्रमुख अङ्ग है । जो गृहस्थ नित्य प्रति सुपात्र दान देने में दत्तचित्त रहता है, जिनेन्द्र प्रभु की पूजा करता है वह निरन्तर सुखी रहता है । दान देकर सन्तुष्ट होना सही दान
दानी सब ही हैं भले, पर है वही कुलीन जो देने के पूर्व ही रहे निषेध विहीन ॥३॥
कु.का.
अर्थ :- "हमारे पास नहीं है" ऐसा मलिन वचन बोले बिना जो पुरुष दान देता है वही कुलीन श्रेष्ठ दानी कहलाता है । दान से मिथ्या दृष्टि भी भोगभूमि को प्राप्त कर लेता है, उत्तम पात्र को दान देने वाला उत्तम भोगभूमि में, मध्यम पात्र को दान देने वाले मध्यम भोगभूमि में और जघन्य पात्रों को दान वितरन से जघन्य भोगभूमि में उत्पन्न हो दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त भोगों को भोगता है । आयु का अवसान होने पर स्वर्ग जाता है । पुनः मनुष्य हो सम्यक्तव प्राप्त कर यथाक्रम से मुक्ति प्राप्त कर लेता है । अतः विवेकीजनों को दान देकर लोभ पर विजय प्राप्त करना चाहिए । यथाशक्ति दान और तप अवश्य करना चाहिए । सञ्चय से होने वाले लाभ का वर्णन
कालेन संचीयमानः परमाणुरपि जायते मेरुः ।।30॥
अन्वयार्थ :- (कालेन) समय-समय में (परमाणु-परमाणु) कण-कण (अपि) भी (संचीयमानः) एकत्रित करते-करते (मेरुः) सुमेरु पर्वत (जायते) बन जाता है ।
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