Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम् ।
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अर्थ :- निश्चय से वह व्यक्ति कभी भी निर्धन नहीं होता जो सदैव अविद्यमान धन की प्राप्ति, प्राप्त धन की रक्षा, रक्षित धन की वृद्धि में प्रयत्नशील होकर भोगोपभोग करता है । सत्यप्रयत्न सम्यगुद्योग से लक्ष्मी लाभ सुलभता से होता है । नीतिकार कहते हैं -
उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी, दैवं प्रधानमिति का पुरुषा वदन्ति । दैवं निरस्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या यत्ने कृते यदि न सिद्भयति कोऽत्र दोषः ।।7।।
नी.श्लो.सं. अर्थ :- लक्ष्मी, उद्योग करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को प्राप्त होती है । दैव (भाग्य) प्रधान है ऐसा कायर पुरुष कहते हैं । अतः दैव को छोड़कर अपनी शक्ति से पुरुषार्थ करो, यत्न करने पर यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो इसमें क्या दोष है ? अथवा ऐसा विचार करे कि हमारे पुरुषार्थ में कोई दोष रह गया होगा, जिससे कार्य सिद्ध नहीं हुआ । न्यायी के पास सम्पत्ति प्रेमपूर्वक स्वयं प्राप्त होती है -
सुधीर र्थार्जने यत्नं कुर्यात् न्याय परायणः
न्याय एवानपायोऽयमुपायः सम्पदा मतः ।। 10।। बुद्धिमान पुरुष न्याय में तत्पर रहता हुआ धनोपार्जन करने का प्रयल करे क्योंकि यह न्याय ही सम्पदाओं का निर्बाध उपाय है । नीतिज्ञों का कथन है -
"लक्ष्मी यदा समायाति नारिकेलि फलाम्बुत्" जिस प्रकार श्रीफल में सात परतों के अन्दर पानी आ जाता है उसी प्रकार न्यायपूर्वक उद्योग करने वाले पुण्यात्मा के आंगन में लक्ष्मी क्रीडा करने आ जाती है । अत: आलस्य त्यागकर सत्पुरुषों को धनार्जन करना चाहिए । अर्थानुबन्ध का लक्षण
अलब्ध लाभो लब्ध परिरक्षणं रक्षित परिवर्द्धनं चार्थानुबन्धः ।।३।।
अन्वयार्थ :- (अलब्ध) अप्राप्त का (लाभः) प्राप्त करना (लब्ध) प्रास का (परिरक्षणं) रक्षण करना (च) और (रक्षित) रक्षा किये गये का (परिवर्द्धनम्) वर्द्धन करना (अर्थानुबन्धः) इसे अर्थानुबन्ध कहते हैं ।
यथायोग्य विधि क्रम से धन कमाना, कमाये गये का रक्षण, रक्षित का वर्द्धन करना ही अर्थानुबन्ध कहा जाता
विशेषार्थ :-- व्यापार व राज्यशासन आदि में साम, दाम, भेद, दण्ड से अविद्यमान धन का कमाना, प्राप्त किए हुए धन की रक्षा करना, चोर, डाकू आदि से बचाना, अथवा पात्र दानादि देकर उसे स्थायी बनाना, यथायोग्य परिवार के पालन-पोषण में खर्च करना, व्यर्थ कार्यों में बरबाद नहीं करना, आय के अनुसार व्यय करना आदि 1 इसी प्रकार