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जीव हैं । वे जीव चाहे व्यवहार राशि के हो, चाहे अव्यवहार राशि के हो, परन्तु उन सभी जीवों में चैतन्य लक्षण एक समान है। समस्त जीवों के मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान का अनन्तवां भाग प्रकट होने से समस्त जीव चेतना लक्षण द्वारा एक प्रकार के है। ____२. वस व स्थावर के भेद से जीव के दो प्रकार : समस्त संसारी जीव त्रस एवं स्थावर इन दो प्रकारों में समाविष्ट हो जाते हैं ।
त्रस वे जीव है, जो अपनी इच्छानुसार गमनागमन करने में समर्थ तथा स्वतंत्र है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ-जा सकते हैं। विकलेंद्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीव त्रस कहलाते हैं। ___ स्थावर में वे जीव आते है, जो सुख-दुःख में इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमनागमन नहीं कर सकते । समस्त एकेन्द्रिय अर्थात् पृथ्वीकायादि पांच काय के जीव स्थावर कहलाते है।
३. वेद की अपेक्षा से जीवों के तीन प्रकार : संसार की समस्त जीवराशि का तीन वेदो में समावेश हो जाता है। कई जीव पुरुष वेद वाले, कई जीव स्त्री वेद वाले तो कई जीव नपुंसक वेद वाले होते हैं।
४. गति की अपेक्षा से जीवों के चार प्रकार : गतिचतुष्क अर्थात् नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देव, इन चार गतियों में संसार के समस्त जीव समा जाते हैं । अतः गति के भेद से जीव के चार प्रकार कहे गये हैं।
५. इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों के पांच प्रकार : पांच इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी जीव पांच प्रकार के है । संसारी जीवों में कोई एकेन्द्रिय है, कोई द्वीन्द्रिय है, कोई त्रीन्द्रिय है, कोई चतुरिन्द्रिय है, तो कोई पंचेन्द्रिय है। परन्तु इन पांच इन्द्रियों से रहित अथवा पांच इन्द्रियों से अधिक किसी भी जीव की सत्ता नहीं है।
६. काय की अपेक्षा से जीवों के छह प्रकार : छहकाय के भेदों में समस्त संसारी जीवों का समावेश होने से जीव के छह प्रकार भी है। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय एवं त्रसकाय, इन षट्काय में सभी संसारी जीव समाविष्ट हो जाते हैं।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण