Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वैदगो ७
असंखे० भागो । एवं मणुसपञ्ज० - मणुसिणीसु । णवरि संखेज्जं कायव्वं । एवं जाव० ।
$ ४९. परिमाणाणु ० दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण भुज० - अप्प ० - अवट्टि • केत्तिया ? अनंता । अवत्त० केत्तिया १ संखेज्जा । एवं तिरिक्खा ० । णवरि अवत्त० णत्थि । आदेसेण णेरइय० सव्वपदा केत्ति ० १ असंखेजा । एवं सव्वणेरइयसव्व पंचिंदियतिरिक्ख- मणुसअपज्ज० - देवा जाव अवराइदा ति । मणुसेसु अवत्त० केत्ति० ? संखेज्जा | सेसपदा केत्ति ० १ असंखेजा । मणुसपज ० - मणुसिणी - सव्वट्ठदेवा० सव्वपदा० केत्ति ० १ संखेजा । एवं जाव० ।
० - अवडि
$ ५०. खेत्ताणु० दुवि० णि० - ओघे० आ० | ओघेण भुज० - अप्प ० -२ केव० खेत्ते ० ? सव्वलोगे । अवत्त० लोगस्स असंखे ० । एवं तिरिक्खा ० णवरि अवत्त ० त्थ । सगदी सव्वपदा० केव० १ लोगस्स असंखे० । एवं जाव०
।
।
$ ५१. पोसणागुगमेण दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण भुज०अप्प० - अवट्टि० केवडि० पोसिदं । सव्वलोगो । अवत्त० केवडि० पोसिदं १ लोग० असंखे० भागो । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त ० णत्थि ।
यिनियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यातवें भागके स्थान में संख्यातवां भाग करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ४९. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्य पदके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। इतनी विशेपता है कि इनमें अवक्तव्य पदके उदीरक जीव नहीं हैं। आदेशसे नारकियोंमें सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्यों में अव
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व्यपदके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवों में सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ५०. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्वलोकप्रमाण क्षेत्र है । अवक्तव्य पदके उदीरक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । इसी प्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है । शेष ग़तियोंमें सब पदोंके उदीरक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ५१. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित अनुभागके उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया | अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है ।