Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 367
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ $ ४५२. किं कारणं ? खवगसेढिम्मि चरिमाणुभागखंडयचरिमफालीए सव्वघा - दिट्ठाणि सरुवाए पयदजहण्णसामित्तोवलंभादो । ३४८ * अरदि-सोगाणं जहण्णगो अणुभागउदयो उदीरणा च थोवाणि । ४५३. किं कारणं ? अपुव्यकरणचरिमसमयम्मि देसघादिविट्ठाणियसरूवेण तदुभयसामित्तावलंबणादो । * जहण्णगो अणुभागबंधो अनंतगुणो । ४५४. किं कारणं ? पमत्तसंजदतप्पा ओग्गविसोहीए बद्धदेसघादिबिट्ठाणियसरूवणवकबंधावलंबणेण पयदजहण्णसामित्तविहाणादो । * जहण्णाणुभागसंकमो संतकम्मं च अनंतगुणाणि । ४५५. कुदो १ सव्वघादिविट्ठाणियचरिमफालिविसयत्तेण पडिलजहण्णभा वादो | एवं जहण्णप्पाबहुअं समत्तं । दो अणुभागविसयमप्पा बहुअं समत्तं होदि । * पदेसेहिं उक्कस्समुक्कस्सेण । ४५६. एत्तो पदेसेहिं उक्कस्समुकस्सेण ढोएदूण पुव्वुत्तपंचपदाणयप्पा बहुअं कस्सामो ति पयदसंभालणवक्कमेदं । $ ४५२. क्योंकि क्षपकश्रेणिमें अन्तिम अनुभागकाण्डकको अन्तिम फालि सर्वघाति द्विस्थानीय स्वरूप उपलब्ध होती है । * अरति और शोकका जघन्य अनुभाग उदय और उदारणा स्तोक हैं । $ ४५३. क्योंकि अपूर्वकरणके अन्तिमसमयमें देशघाति और द्विस्थानीयरूपसे इन दोनोंके स्वामित्वका अवलम्बन लिया है । * उनसे जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है I $ ४५४. क्योंकि प्रमत्तसंयतकी तत्प्रायोग्य विशुद्धिको निमित्त कर बद्ध देशघाति द्विस्थानीयस्वरूप नवकबन्धके अवलम्बन द्वारा प्रकृत जघन्य स्वामित्वका विधान किया है । * उससे जघन्य अनुभाग संक्रम और सत्कर्म अनन्तगुणे हैं । ४५५. क्योंकि ये सर्वघाति द्विस्थानीय अन्तिम फालिको विषय करनेवाले होनेसे जघन्यपनेको प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार जघन्य अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । इसके बाद अनुभागविषयक अल्पबहुत्व समाप्त होता है । * अब प्रदेशोंकी अपेक्षा उत्कृष्टका उत्कृष्टके साथ अल्पबहुत्व करते हैं । $ ४५६. जघन्य अनभागविषयक अल्पबहुत्वका कथन करनेके बाद अब प्रदेशोंकी अपेक्षा उत्कृष्टको उत्कृष्ट के साथ स्वीकार कर पूर्वोक्त पाँच पदोंके अल्पबहुत्वको करेंगे इस प्रकार प्रकृतकी सम्हाल करनेवाला यह वाक्य है ।

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