Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 371
________________ ३५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 1 [वेदगो 5 ४६७. किं कारणं ? असंखेजसमयपबद्धपमाणगुणसेढिगोवुच्छसरूवत्तादो । एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा। * उक्कस्सपदेससंकमो असंखेनगुणो । $ ४६८. कुदो ? थोवर्णादवड्डगुणहाणिमेत्तुक्कस्ससमयपबद्धपमाणत्तादो। एत्थ गुणगारो ओकड्डुक्कडणभागहारादो असंखेजगुणो ! * उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ४६९. केत्तियमेत्तो विसेसो १ मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तम्मि पक्खिविय पुणो सम्मामिच्छत्तं खवेमाणो जाव चरिमफालिं ण पादेदि ताव एदम्मि अंतरे गुणसेढीए गुणसंकमेण च विणट्ठदव्वमेत्तो। * तिसंजलणतिवेदाणमुक्कस्सपदेसबंधो थोवो। ४७०. किं कारणं ? सण्णिपंचिंदियपञ्जत्तेणुकस्सजोगेण बद्धसमयवबद्धपमाणदो * उक्कस्सिया पदेसु दीरणा असंखेनगुणा। ४७१. कुदो ? णववसेढीयअप्पप्पणो पढमविदोए समयाहियावलियमेत्तसेसाए उदीरिजमाणमसंखेजसमयपबद्धाणमिहग्गहणादो। एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेतो। $ ४६७. क्योंकि वह असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण गुणश्रेणीगोपुच्छास्वरूप है । यहाँ पर गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है। ___ * उससे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है। $ ४६८. क्योंकि वह कुछ कम डेढ़ गुणहानिमात्र उत्कृष्ट समयप्रबद्धप्रमाण है। यहाँ पर गुणकार अपकर्षण उत्कर्षणभागहारसे असंख्यातगुणा है । * उससे उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ ४६९, शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-मिथ्यात्वको सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रक्षिप्त करके पुनः सम्यग्मिध्यात्वका क्षयं करता हुआ जब तक अन्तिम फालिका पतन नहीं करता है तब तक इस अन्तरालमें गुणश्रेणि और गुणसंक्रम द्वारा जितना द्रव्य नष्ट होता है उतना है। * तीन संज्वलन और तीन वेदोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध स्तोक है। ___$ ४७०. क्योंकि वह संज्ञी पश्चेन्द्रिय पर्याप्त जीव द्वारा उत्कृष्ट योगको निमित्तकर बद्ध समयप्रबद्धप्रमाण है। .. * उससे उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है। $ ४७१. क्योंकि क्षपकश्रेणिमें अपनी-अपनी प्रथम स्थिति समयाधिक आवलि मात्र शेष रहने पर उदीर्यमाण असंख्यात समयप्रबद्धोंको यहाँ ग्रहण किया है, यहाँ पर गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। १. आ० प्रतौ पावेदि इति पाठः।

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