Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२ बंधादिपंचपदप्पाबहुअं
३५५ $ ४७९. केत्तियमेत्तो विसेसो ? मायादव्वं पडिच्छियूण जाव चरिमसमयसुहुमसांपराइयो ण होइ, ताव एदम्मि अंतराले भट्ठदव्वमेत्तो ।
एवमुक्कस्सपदेसप्पाबहुअं समत्तं * जहण्णयं ।
४८० सुगममेदमहियारसंभालणवक्कं । * मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं जहणिया पदसदीरणा थोवा ।
४८१. कुदो ? मिच्छाइद्विणा सव्वुक्कस्ससंकिलेसेणुदीरिजमाणासंखेजलोगपडिभागियदव्वस्स सव्वत्थोवत्तं पडि विरोहाभावादो।
* उदयो असंखजगुणो।
६४८२. तं जहा-मिच्छत्तस्स ताव उवसमसम्माइट्ठी सासणगुणं पडिवजिय छावलियाओ अच्छियूण मिच्छत्तं गदो। तस्स आवलियमिच्छाइडिस्स असंखेजलागपडिभागेणोक्कड्डिय णिसित्तदव्वं घेत्तण जहण्णोदयो जादो। जेण सत्थाणमिच्छाइट्ठिसव्वुक्कस्ससंकिलेसादो एत्थतणसंकिलेसो अणंतगुणहीणो तेणेदं दव्वं पुन्विन्लदव्वादो असंखेजगणं जादं । अट्ठकसायाणं पुण उवसंतकसायो कालं कादूण देवेसुववण्णो, तस्स असंखेजलोगपडिभागेणुदयावलियम्भंतरे णिसित्तदव्वस्स चरिमणिसेयं घेत्तण जहण्ण
६४७९. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-मायाके द्रव्यको संक्रमित कर जब तक अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक नहीं होता तब तक इस अन्तरालमें जो द्रव्य नष्ट होता है तत्प्रमाण है।
इस प्रकार उत्कृष्ट प्रदेश अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। * अब जघन्यका प्रकरण है। 5 ४८०. अधिकारको सम्हाल करनेवाला यह वाक्य सुगम है।
* मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणा स्तोक है। ६४८१. क्योंकि मिथ्यादृष्टिके द्वारा सर्वोत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे उदीर्यमाण असंख्यात लोक प्रतिभागीय द्रव्यके सबसे स्तोकपनेके प्रति विरोधका अभाव है। ___ * उससे उदय असंख्यातगुणा है।
६ ४८२. यथा-सर्व प्रथम मिथ्यात्वकी अपेक्षा कहते हैं, उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त कर और छह आवलिप्रमाण काल तक वहाँ रह कर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। एक आवलि काल तक मिथ्यादृष्टि रहे हुए उस जीवके असंख्यात लोक प्रतिभाग के क्रमसे अपकर्षित होकर निक्षिप्त हुए द्रव्यको ग्रहण कर मिथ्यात्वका जघन्य उदय हुआ है । यतः स्वस्थान मिथ्यादृष्टि जीवके सबसे उत्कृष्ट संक्लेशसे इस जीवका संक्लेश अनन्तगुणा हीन है, इसलिए यह द्रव्य पूर्वके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है, तथा आठ कषायोंका, उपशान्तकषाय जीवके मर कर देवोंमें उत्पन्न होने पर उसके असंख्यात लोक प्रतिभागके क्रमसे उदयावलिके भीतर निक्षिप्त हुए द्रव्यके अन्तिम निषेकको ग्रहण कर जघन्य स्वामित्व हुआ है । इसलिए