Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
बंधादिपंचपदप्पाबहुअं
९ ४८६. कुदो ? मिच्छत्ता हिमुह असंजदसम्माट्टिणा उकस्ससंकिलेसेणुदीरिजमाणासंखेज्जलोगपडिभागियदव्वस्स गहणादो ।
* उदयो असंखेज्जगुणो ।
$ ४८७. किं कारणं ? उवसमसम्मत्तपच्छायदवेदयसम्माइट्ठिस्स पढमावलियचरिमसमये उदीरणोदयदव्वं घेत्तूण जहण्णसामित्तावलंबणादो । एसो वि असंखेज्जलोगपडिभागिओ चेत्र । किंतु पुव्विल्लसंकिलेसा दो संपहियसंकिलेसो अनंतगुणहीणो, तेणुदयो असंखेञ्जगुणो ति सिद्धं । को गुणगारो ? तप्पा ओग्गासंखेजवाणि ।
* संकमो असंखेजगुणो ।
$ ४८८. किं कारणं ? खविदकम्संसियलक्खणेणागंतू णुव्वेल्लेमाणस्स दुचरिमखंडयचरिमफालीए उव्वेल्लणभागहारेण जहण्णसामित्तावलंबणादो। एत्थ असंखेजलोगमेत्तो गुणगारो ।
* संतकम्ममसंखे जगुणं ।
$ ४८९. किं कारणं ? सम्मत्तमुव्वेल्लेमाणखविदकम्मंसियस्स एयट्ठिदिदुसमयकालसेसे जहण्णसामित्तपडिलंभादो । एदं च सम्मत्तचरिमुव्वेलण खंडयचरिमफालीजहण्णदव्वं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण खंडिदेयखंडमेत्तं । जहण्णसंकमदव्वं पुण तं चैव
$ ४८६. क्योंकि मिथ्यात्वके अभिमुख हुए असंयतसम्यग्दृष्टिके द्वारा उत्कृष्ट संक्लेशवश उदीर्यमाण असंख्यात लोक प्रतिभागीय द्रव्यको प्रकृतमें ग्रहण किया है ।
* उससे उदय असंख्यातगुणा है ।
$ ४८७. क्योंकि उपशमसम्यक्त्वके अनन्तर जो वेदकसम्यग्दृष्टि हुआ है उसके प्रथम आवलिके अन्तिम समय में उदीरणोदयरूप द्रव्यको ग्रहण कर प्रकृतमें जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है । यह भी असंख्यात लोकका भाग देनेपर एक भागप्रमाण ही है । किन्तु पूर्वके संक्लेश से साम्प्रतिक संक्लेश अनन्तगुणा हीन है, इसलिए उदय असंख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ । गुणकार क्या है ? तत्प्रायोग्य असंख्यातरूप गुणकार है ।
* उससे संक्रम असंख्यातगुणा है ।
$ ४८८. क्योंकि क्षपितकर्माशिकलक्षणसे आकर उद्बलना करनेवाले जीवके उद्बोलना भागहारद्वारा द्विचरमकाण्डककी अन्तिम फालिके प्राप्त होनेपर जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है । यहाँ पर गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है ।
* उससे सत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
$ ४८९. क्योंकि सम्यक्त्वकी उद्वेलना करनेवाले क्षपितकर्माशिकके दो समय कालप्रमाण एक स्थितिके शेष रहनेपर जघन्य स्वामित्वकी उपलब्धि होती है । और यह द्रव्य सम्यक्त्वके अन्तिम उद्वेण्डलनकाण्डककी अन्तिम फालिस्वरूप जघन्य द्रव्यको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर एक खण्डप्रमाण है । परन्तु जघन्य संक्रम द्रव्य उसी जघन्य सत्कर्मको