Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 379
________________ ३६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ गुणगारो ? पलिदो • असंखे भागो। ओकड्डक्कड्डण-अधापवत्त-भागहारेहि पदुप्पप्रणबेछावडिअण्णोण्णब्भत्थरासिस्स असंखे०भागो जोगगुणगारपडिभागिओ एत्थ गुणगारो त्ति भणिदं होइ। * संतकम्ममसंखोजगुणं । $ ४९५. किं कारणं ? असंखेजपंचिंदियसमयपबद्धसंजुत्तगुणसेढिगोवुच्छसरूवत्तादो। को गुणगारो १ दिवड्डगुणहाणीए असंखे०भागो। * कोहसंजलणस्स जहणिया पदेसुदीरणा थोवा । 5 ४९६. कुदो ? मिच्छाइद्विणा सव्वुक्कस्ससंकिलिडेणुदीरिजमाणासंखे०लोगपडिभागियदव्वस्त गहणादो। * उदयो असंखेजगुणो। ६४९७. किं कारणं ? उवसमसेढीए अंतरकरणं समाणिय कालं कादण देवेसुप्पण्णस्स असंखे०लोगपडिभागेणुदयावलियम्भंतरे णिसित्तदव्वस्स चरिमणिसेयमस्सियूण पयदजहण्णसामित्तावलंबणादो । को गुणगारो ? तप्पाओग्गासंखे० रूवाणि । ___ * बंधो असंखेजगुणो। है यह सिद्ध हुआ। शंका-गुणकार क्या है ? समाधान--पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग गुणकार है । अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार और अधःप्रवृत्तभागहारसे प्रत्युत्पन्न दो छयासठ सागरोपमकी अन्योन्याभ्यस्तराशिका असंख्यातवां भाग योगगणकारका भागहाररूप यहाँ गुणकार है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * उससे सत्कमें असंख्यातगुणा है। $ ४९५. क्योंकि वह पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी असंख्यात समयप्रबद्धसंयुक्त गुणश्रेणिके गोपुच्छस्वरूप है। शंका--गुणकार क्या है ? समाधान-डेढ़ गुणहानिका असंख्यातवा भागप्रमाण गुणकार है। * क्रोधसंज्वलनकी जघन्य प्रदेश उदीरणा स्तोक है। $ ४९६. क्योंकि मिथ्यादृष्टिके द्वारा सर्वोत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे उदीर्यमाण द्रव्य असंख्यात लोकका भाग देने पर एक भागप्रमाण प्रकृतमें लिया गया है। * उससे उदय असंख्यातगुणा है। ६४९७. क्योंकि उपशमश्रेणिमें अन्तरकरणको समाप्तकर और मर कर देवोंमें उत्पन्न हुए जीवके असंख्यात लोकका भाग देने पर जो एक भागप्रमाण द्रव्य उदयावलिमें निक्षिप्त होता है उसके अन्तिम निषेकको ग्रहण कर प्रकृत जघन्य स्वामित्वका यहाँ अवलम्बन लिया है। गुणकार क्या है ? तत्प्रायोग्य असंख्यात रूप गुणकार है। * उससे बन्ध असंख्यातगुणा है।

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