Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२]
बंधादिपचपदप्पाबहुअं * उक्कस्सपदेसुदयो असंखेजगुणो ।
$ ४७२. किं कारणं ? उदीरणा णाम गुणसेढिसीसयदव्वस्सासंखेजभागमेत्ती होइ । उक्कस्सुदयो पुण अप्पप्पणो चरिमोदयमणणाहियगुणसेढिगोवुच्छसरूवं घेत्तूण जादो । तदो सिद्धमखेसंज्जगुणत्तमेदस्स पुबिन्लादो।को गुणगारो? पलिदोवमस्से असंखेजदिभागमेत्तो।
* उक्कस्सपदेससंकमो असंखजगणो ।
$ ४७३. को गुणगारो ? असंखेजाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । किं कारणं ? अप्पप्पणो सव्वुक्कस्ससव्वसंकमदव्वस्स गहणादो।
* उक्कस्सपदेससंतकम्मं विस साहियं ।
४७४. केत्तियमेत्त विसेसो ? अप्पप्पणो दव्यमुक्कस्सं कादूण पुणो जाव सव्वसंकमेण ण परिणमइ ताव एदम्मि अंतराले गट्ठासंखे०भागमेत्तो।
* लोभसंजलणस्स उक्कस्सपदेसबंधो थोवो । $ ४७५. सुगमं । * उक्कस्सपदेससंकमो असंखेजगुणो। * उससे उत्कृष्ट उदय असंख्यातगुणा है । $ ४७२. क्योंकि उदीरणा गुणश्रेणिशीर्ष द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होती है। परन्तु उत्कृष्ट उदय अपने-अपने न्यूनाधिकतासे रहित गुणश्रेणि गोपुच्छस्वरूप अन्तिम उदयरूपसे विवक्षित है । इसलिए उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणासे इसका असंख्यात गुणापना सिद्ध है।
शंका-गुणकार क्या है ? समाधान—पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है।
* उससे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगणा है । .६४७३. शंका-गुणकार क्या है ? ।
समाधान—पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण गुणकार है, क्योंकि अपने-अपने सर्वोत्कृष्ट सर्वसंक्रम द्रव्यको प्रकृतमें ग्रहण किया है।
* उससे उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ ४७४. शंका -विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान—अपना-अपना द्रव्य उत्कृष्टकर पुनः जब तक वह सर्वसंक्रम रूपसे परिणत नहीं होता तब तक इस अन्तरालमें जो असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्य नष्ट होता है उतना है।
* लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध स्तोक है। ४७५. यह सूत्र सुगम है। * उससे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । १. आ०--ता० प्रत्योः गुणगारो च पलिदोवमस्स इति पाठः