Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुअणिहेसो
३४९ * मिच्छत्तबारसकसायछण्णोकसायाणमुक्कस्सिया पदेसुदीरणा थोवा ।
४५७. कुदो ? अप्पप्पणो सामित्तविसये उक्कस्सविसोहीए उदीरिजमाणासंखेजलोगपडिभागियदव्वस्स गहणादो ।
* उक्कस्सगो बंधो असंखेजगुणो।
४५८. कुदो १ सण्णिपंचिंदियपजत्तेणुक्कस्सजोगिणा बज्झमाणुकस्सस्स समयपबद्धस्स अणूणाहियस्स गहणादो । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा।
* उकस्सपदेस दयो असंखेजगुणो ।
$ ४५९ कुदो १ असंखेजसमयबद्धपमाणात्तादो | तंजहा–मिच्छत्ताणताणुबंधीणं संजदासंजद-संजदगुणसेढिसीसयाणि एक्कदो कादण मिच्छत्तं पडिवण्णपढमसमयमिच्छाइद्वितदुदयसमकालमुकस्ससामित्तं जादं । अट्ठकसायाणंच संजमासंजम-संजम-दसणमोहक्खवयगुणसेढिसीसयाणं तिण्हमेकलग्गाणमुदयेणुकस्ससामित्तं गहिदं। छण्णोकसायाणं पि अपुवकरणचरिमसमए वेदिजमाणगुणसेढिगोवुच्छं घेत्तणुकस्ससामित्तं दिग्णं । तदो गुणसेढिमाहप्पेणासंखेजपंचिंदियसमयपबद्धपमाणत्तादो पुव्विल्लं पेक्खियण एसो असंखेजगुणो त्ति सिद्धं । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो।
* मिथ्यात्व, बारह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा स्तोक है।
६४५७. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा विषयक अपने-अपने स्वामित्वको ध्यानमें रखकर उत्कृष्ट विशुद्धिवश उदीर्यमाण असंख्यात लोकप्रतिभागी द्रव्यको प्रकृतमें ग्रहण किया है। - * उससे उत्कृष्ट अनुभागबन्ध असंख्यातगुणा है।
$ ४५८. क्योंकि उत्कृष्ट योगसे युक्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीव द्वारा न्यूनाधिकतासे रहित बँधनेवाले उत्कृष्ट समयप्रबद्धको प्रकृतमें ग्रहण किया है।
शंका-गुणकार क्या है ? । समाधान-असंख्यात लोक गुणकार है।
* उससे उत्कृष्ट प्रदेश उदय असंख्यातगुणा है । ६४५९. क्योंकि वह असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण है। यथा-मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धियोंका संयतासंयत और संयतसम्बन्धी गुणश्रेणिशीर्षों को एकत्रितकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुए प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके उदयसमकालीन उत्कृष्ट स्वामित्व हुआ है । और आठ कषायोंका संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहक्षपकसम्बन्धी परस्पर संलग्न तीन गुणश्रेणिशीर्षों के उदयसे उत्कृष्ट स्वामित्व ग्रहण किया है । छह नोकषायोंको भी अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें वेद्यमान गुणश्रेणिगोपुच्छको ग्रहणकर उत्कृष्ट स्वामित्व दिया है। इसलिए गुणश्रेणियोंके माहात्म्यवश पश्चेन्द्रिय सम्बन्धी असंख्यात समयप्रबद्ध प्रमाण होनेसे पिछलेको देखते हुए यह असंख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ।
१. ताप्रतौ -इट्टि [ स्स ] तदुदय-इति पाठः ।