Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुअणिहेसो
३४७ घेत्तण तिण्हमेदेसिं जहण्णसामित्तावलंबणादो ।
* जहण्णगो अणुभागउदयो अणंतगुणो ।
5 ४४८. कुदो ? देसघादिएयटाणियत्ताविसेसे वि संपहिबंधादो उदयो अणंतगुणो त्ति णायमस्सियूण पुचिल्लाणुभागादो एदस्स तहाभावसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभादो।
* जहणिया अणुभागउदीरणा अणंतगुणा ।
४४९. एसा वि देसघादिएयवाणियसरूवा चेय, किंतु समयाहियावलियमेत्तं हेट्ठा ओसरियूण जहण्णा जादा । तेण पुग्विल्लादो एदिस्से अणंतगुणत्तं ण विरुज्झदे । . * हस्स-रदि-भय-दुगुछाणं जहण्णाणुभागबंधो थोवो।।
४५०. कुदो ? अपुव्वकरणचरिमसमयणवकबंधस्स देसघादिविट्ठाणियसरूवस्स गहणादो।
* जहण्णगो अणुभागउदयोदीरणा च अणंतगुणा ।
४५१. कुदो ? एदेसि पि तत्थेव जहण्णसामित्ते संते वि संपहिबंधादो संपहियउदयस्साणंतगुणत्तमस्सियूण तहाभावसिद्धीदो ।
* जहण्णगो अणुभागसंकमो संतकम्मं च अणंतगुणाणि । स्वरूप जघन्य अनुभागबन्धके ध्यानमें रखकर यहाँ इन तीनोंके जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है।
* उनसे जघन्य अनुभाग उदय अनन्तगुणा है।
४४८. देशघाति और एक स्थानीयपनेकी अपेक्षा विशेषता न होनेपर भी साम्प्रतिक बंधसे उदय अनन्तगुणा है इस न्यायका आश्रयकर पूर्वोक्त बन्धके जघन्य अनुभागसे इसके उस प्रकारकी सिद्धि निर्बाध पाई जाती है।
* उससे जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है । ६४४९. यह भी देशघाति एक स्थानीय स्वरूप ही है । किन्तु समयाधिक एक आवलिमात्र पीछे जाकर जघन्य हुई है, इसलिए जघन्य अनुभाग उदयसे इसका अनन्तगुणापना विरोधको प्राप्त नहीं होता।
* हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य अनुभागबन्ध स्तोक है। $४५०. क्योंकि अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें होनेवाले देशघाति द्विस्थानीयस्वरूप नवकबन्धको यहाँ पर ग्रहण किया है। __* उससे जघन्य अनुभाग उदय और उदीरणा अनन्तगुणे हैं ।
४५१. क्योंकि इनका भी जघन्य स्वामित्व होनेपर भी साम्प्रतिक बन्धसे साम्प्रतिक उदय अनन्तगुणा है, इसलिए उससे इसका अनन्तगुणपना सिद्ध होता है।
* उनसे जघन्य अनुभाग संक्रम और सत्कर्म अनन्तगुणे हैं ।