Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 364
________________ ३४५ गां० ६२ ] बंधादिपंचपदप्पाबहुअणिद्देसो $ ४४१. तं कथं उदीरणा णाम उदयसरूवेण सुट्ठ ओहड्डियूण पदिदाणुभागं घेण जहण्णा जादा । संकमो पुण तत्तो अनंतगुणोकड्डिजमाणाणुभागं घेत्तूण जहण्णो जादो । तेण कारणेणाणंतगुणत्तमेदस्स ण विरुज्झदे । * जहण्णगो अणुभागबंधो अनंतगुणो । $ ४४२. कुदो ? बादर किट्टिसरूवेणाणियट्टिकरणचरिमसमये बज्झमाणजहण्णाभागधस्स गणादो । * इत्धि-णवु सयवेदाणं जहण्णगो अणुभागउदयो संतकम्मं च थोवाणि । $ ४४३. कुदो १ देसघादिए गट्ठाणियसरूवत्तादो | * जहण्णिया अणुभागुदीरणा अणंतगुणा । ४४४. कुदो ? एसा वि देसघादिएगट्ठाणिय सरूवा चेय, किंतु हेट्ठा समयाहियावलियमेत्तो ओसरियूण जहण्णा जादा । तदो उवरिमावलियमेत्तकालमपत्तघादत्तादो एसा अनंतगुणाति सिद्धं । * जहण्णगो अणुभागबंधो अनंतगुणो । $ ४४५. किं कारणं १ बिट्ठाणियसरूवत्तादो । तं जहा –सम्मत्तं संजमं च जुगवं गेहमाणो मिच्छाइट्ठि अंतोमुहुत्तकालं पुव्वमेव इत्थि - णवं सयवेदे णो बंधदि । तेण $ ४४१. शंका वह कैसे ? समाधान-- उदीरणा तो अच्छी तरह अपवर्तित होकर उदयरूपसे प्राप्त हुए अनुभागको ग्रहण कर जघन्य हुई है । परन्तु संक्रम उससे अनन्तगुणे अपकर्षित होनेवाले अनुभागको ग्रहण कर जघन्य हुआ है। इस कारणसे इसका अनन्तगुणापना विरोधको प्राप्त नहीं होता । * उससे जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । $ ४४२. क्योंकि अनिवृत्तिकरणमें बादर कृष्टिरूपसे बँधनेवाले जघन्य अनुभागबन्धको प्रकृतमें ग्रहण किया है । * स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य अनुभाग उदय और सत्कर्म स्तोक हैं । $ ४४३. क्योंकि वह देशघाति एकस्थानीय है । * उनसे जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है । $ ४४४. क्योंकि यह भी देशघाति एकस्थानीयस्वरूप ही है, किन्तु यह उदय समय से एक समय अधिक एक आवलिमात्र पीछे जाकर जघन्य हुई है । इसलिए यह उपरिम आवलिमात्रकाल तक घातको प्राप्त न होनेसे अनन्तगुणी है यह सिद्ध हुआ । * उससे जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । $ ४४५. क्योंकि यह द्विस्थानीयस्वरूप है । यथा - सम्यक्त्व और संयमको युगपत् ग्रहण करनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव अन्तर्मुहूर्तकाल पहलेसे ही स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका बन्ध नहीं ४४

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