Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
मूलपयडिपदेसउदीरणाए णाणाजीवेहि कालो
१९७
चोद्दस ० | सोहम्मीसाण० देवोघं | सणक्कुमारादि जाव सव्वट्ठा त्ति उक्कस्सपोसणभंगो ।
एवं जाव० ।
$ ४२. कालो दुविहो -- जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिदेसो-ओषेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० पदे० जह० एस ०, उक्क० संखेजा समया । अणुक्क० सव्वद्धा । एवं मणुसतिये सच्चट्ठे च ।
$ ४३. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असं०भागो । अणुक्क० सव्वद्धा । एवं सव्वणिरय - सव्वतिरिक्ख- देवा भवणादि जाव अवराजिदा ति । मणुस अपज० मोह० उक्क० जह० एस ०, उक्क० आव० असंखे ० भागो । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । एवं जाव० ।
अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सौधर्म और ऐशान कल्पमें स्पर्शनका भंग सामान्य देवोंके समान है । सनत्कुमारसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें उत्कृष्ट स्पर्शनके समान भंग है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – नरक आदि चारों गतियों और उनके अवान्तर भेदोंमें अपने-अपने स्वामित्व और स्पर्शनको जानकर प्रकृत स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । विशेष व्याख्यान न होनेसे यहाँ पृथक् पृथक स्पष्टीकरण नहीं किया है ।
$ ४२. काल दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जानना चाहिए।
विशेषार्थ —— ओघसे क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिक जीव अपने कालमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंकी उदीरणा करते हैं। ऐसे जीव लगातार उक्त उदीरणा करें तो उसका उत्कृष्ट काल संख्यात समय ही होगा । इसीसे यहाँ नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन सुगम है ।
$ ४३. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार सब नारकी सब तिर्यञ्च, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए |