Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो
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उक्क० संखेजा समया । सम्मामि० भुज ० -- अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवं मणुसपञ्जत - मणुसिणीसु । णवरि वेदा जाणियव्वा ।
९३२७. अणुदिसादि अवराजिदा चि सम्म० -- बारसक० -- सत्तणोक० आणदभंगो । णवरि सम्म० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । एवं सवट्टे । णवरि सव्वपयडीणं अवत्त० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । एवं जाव० ।
$ ३२८. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०सोलसक० - सत्तणोक० सव्वपदाणं णत्थि अंतरं निरंतरं । णवरि मिच्छ० अवत्त०
अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । तथा सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि अपने-अपने वेद जान लेने चाहिए | विशेषार्थ- - सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में संख्यात जीव ही मियात्व आदि छह प्रकृतियोंकी अवक्तव्य प्रदेश उदीरणा करते हैं, इसलिए इस पढ़के प्रद ेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय बन जानेसे वह तत्प्रमाण कहा है। यद्यपि पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यिनियोंका परिमाण ही संख्यात है फिर भी इनमें उक्त प्रकृतियोंके शेष पदोंके प्रदेश उदीरकोंका तथा अन्य शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके प्रदेश उदीरकोंका काल पञ्चेन्द्रिय तिर्यनोंके समान बन जानेसे उसे उनके समान जाननेकी सूचना की है । मात्र उक्त तीनों प्रकारके मनुष्यों में सम्यग्मिथ्यात्वका नाना जीवोंकी अपेक्षा भी उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है, इसलिए इनमें इसके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाने से वह तत्प्रमाण कहा है। शेष सब कथन स्पष्ट ही है ।
$ ३२७. अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायका भंग आनतकल्प के समान है । इतनी विशेषता है कि यहाँ सम्यक्त्वके अबक्तव्य प्रदेश उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ सब प्रकृतियोंके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – अनुदिश आदिके सब देवोंमें जो द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव मर कर उत्पन्न होते हैं उन्हीं के सम्यक्त्वकी अवक्तव्य प्रदेश उदीरणा होती है, ऐसे जीव यदि वहाँ लगातार उत्पन्न हों तो वे संख्यात ही होंगे । यही कारण है कि यहाँ सम्यक्त्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । सर्वार्थसिद्धिके सब देव ही संख्यात हैं, इसलिए यहाँ सब प्रकृतियोंके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय बन जानेसे यह तत्प्रमाण कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है ।
$ ३२८. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पदोंके प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं
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