Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
$ ३४०. संपहि विदियगाहापच्छिमद्धस्स अत्थविहासा कायव्या, पत्तावसरत्तादो । सा बुण हेट्ठदो चैव गया त्ति पदुष्पायणट्टमुत्तरमुत्तमोइणं
३१८
* 'सांतर - निरंतरो वा कदि वा समया दु बोद्धव्वा' त्ति । एत्थ अंतरं च कालो चट्ठदो विहासिया ।
$ ३४१. गयत्थमेदं सुत्तं, 'सांतर - णिरंतरो वा' त्ति एदेण गाहासुत्तात्रयवेण सूचिकालंतराणं हेट्ठियोवरिमसे साणिओगद्दाराविणाभावीणं पयडि- डिदि - अणुभागपदेसुदीरणासु सवित्थरमणुमग्गियत्तादो | एवं विदियगाहाए अत्थपरूवणं समाणिय संपहि तदिगाहाए जहावसरपत्तमत्थविहासणं कुणमाणो तिस्से वि दो चैव विहासियत्तादो वित्थर परूवणमुज्झिग्रूण संखेवत्थपरूवणमुवरिमं सुत्तपबंधमाह -
* 'बहुगदरं बहुगदरं से काले को णु थोवदरगं वा' त्ति एत्तो भुजगारो कायो ।
$ ३४२. एसा ताव तदियगाहाभुजगारुदीरणाए कथं पडिबद्धा त्ति पुच्छाए frorst करके । तं जहा -' 1 - 'बहुगदरं बहुगदरं' इच्वेदेण सुत्तावयवेण भुजगारसण्णिदो असे सूचिदो | 'से काले को णु थोवदरगं वा' त्ति एदेण वि अप्पदरसणिदो
६ ३४०. अब दूसरी गाथा के उत्तरार्ध के अर्थके विशेष व्याख्यानका अवसर प्राप्त होनेसे उसका व्याख्यान करना चाहिए । किन्तु उसका विशेष व्याख्यान पहले ही कर आये हैं इस वातका कथन करने के लिए आगेका सूत्र आया है
* 'सांतर - णिरंतरो वा कदि वा समया दुबोद्धव्वा' इस प्रकार इस गाथांशमें सूचित हुए अन्तर और कालका विशेष व्याख्यान पहले ही कर आये हैं ।
$ ३४१. यह सूत्र गतार्थ है, क्योंकि 'सांतर - णिरंतरो वा' इस प्रकार गाथा सूत्रके इस tara द्वारा सूचित हुए पिछले और आगे के शेष अनुयोगद्वारोंके अविनाभावी काल और अन्तर अनुयोगद्वारोंका प्रकृति उदीरणा, स्थिति उदीरणा, अनुभाग उदीरणा और प्रदेश उदीरणा व्याख्यानके समय विस्तार के साथ अनुमार्गण कर आये हैं । इस प्रकार दूसरी गाथाके अर्थका कथन समाप्त कर अब तीसरी गाथाके अवसर प्राप्त अर्थका व्याख्यान करते हुए उसका भी पहले ही व्याख्यान कर आये हैं, इसलिए विस्तार पूर्वक उसके व्याख्यानको छोड़ कर संक्षेपसे अर्थका कथन करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध कहते हैं
* 'बहुदरं बहुगदरं से काले को णु थोवदरगं वा' इस प्रकार इस तीसरी गाथा द्वारा भुजगार उदीरणाका व्याख्यान करना चाहिए ।
$ ३४२. यह तीसरी गाथा भुजगार उदीरणामें किस प्रकार प्रतिबद्ध है ऐसी पृच्छा होने पर उसका निर्णय करते हैं । यथा - 'बहुगदरं बहुगदर' इस प्रकार इस सूत्रावयव द्वारा भुजगार संज्ञावाली अवस्था विशेष सूचित की गई है । काले को णु थोवदरगं वा' इस