Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुअं
३३७ * जहिदिउदीरणा असंखेजगुणा ।
४०६. कुदो ? समयाहियावलियपमाणत्तादो । * जहण्णगो हिदिसंकमो असंखेजगुणो ।
४०७. कुदो १ पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तचरिमफालिविसयत्तादो । * जहण्णगो हिदिबंधो असंखेजगुणो ।
६४०८. कुदो १ एइंदियजहण्णढिदिबंधस्स पलिदोवमासंखेजमागपरिहीणसागरो-. वमवे-सत्तभागपमाणस्स गहणादो। * पुरिसवेदस्स जहण्णगो हिदिउदयो द्विविउदीरणा च थोवा ।
४०९. कुदो ? एगहिदिपमाणत्तादो । * जहिदिउदयो तत्तियो चेव । . $ ४१०. सुगमं । * जट्ठिविउदीरणा समयाहियावलिया सा असंखेनगुणा ।
४११. सुगमं ।
* जहण्णगो ट्ठिदिबंधो हिदिसंकमो हिदिसंतकम्मं च ताणि संखेजगुणाणि ।
* उनसे यत्थिति उदीरणा असंख्यातगुणी है। ६४०६. क्योंकि वह एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण है।
* उससे जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । 5 ४०७. क्योंकि वह पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र अन्तिम फालिको विषय करता है।
* उससे जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। $ ४०८. क्योंकि एकेन्द्रिय जीवके पल्योपमके असंख्यातर्षे भाग कम ऐसे सागरोपमके दो बटे सात भागप्रमाण स्थितिबन्धको यहाँ पर ग्रहण किया है।
* पुरुषवेदका जघन्य स्थिति उदय और स्थिति उदीरणा स्तोक हैं । ६४०९. क्योंकि वे एक स्थितिप्रमाण है।
* उनसे यत्स्थितिउदय उतना ही है । ६४१०. यह सूत्र सुगम है।।
* उससे यस्थितिउदीरणा एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण है, वह असंख्यातगुणी है। ६४११. यह सूत्र सुगम है।
* उससे जघन्य स्थितिबन्ध, स्थितिसंक्रम और स्थितिसत्कर्म ये तीनों संख्यात गुणे हैं।
१. ताप्रती असंखेजगुणाणि इति पाठः। .