Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३४० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ * मिच्छत्त-सोलसकसाय - णवणोकसायाणमुक्कस्सअणुभागउदीरणा उदयो च थोवा।
$ ४२३. कुदो ? उक्कस्साणुभागबंधसंतकम्माणमणंतिमभागे चेव सव्वकालमुदयोदीरणाणं पवुत्तिदंसणादो।
* उक्कस्सओ बंधो संकमो संतकम्मं च अणंतगुणाणि ।
४२४. कुदो ? सण्णिपंचिंदियमिच्छाइद्विस्स सव्वुक्कस्ससंकिलेसेण बद्धक्कस्साणुभागस्स अणूणाहियस्स गहणादो ।
___ * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सअणुभागउदओ उदीरणा च थोवाणि।
5 ४२५. कुदा ? एदेसिमुक्कस्साणुभागसंतकम्मचरिमफद्दयादो अणंतगुणहीणफद्दयसरूवेण सव्वद्धमुदयोदीरणाणं पवुत्तिदंसणादो ।
* उक्कस्सओ अणुभागसंकमो संतकम्मं च अणंतगुणाणि । ___४२६. कुदो ? किंचि वि घादमपावेयूण द्विदसगुक्कस्साणुभागसरूवेण पत्तुक्कस्सभावत्तादो।
एवमुक्कस्सप्पाबहुअं समत्तं । * एत्तो जहण्णयमप्पाबहुभं ।
* मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा और उदय स्तोक हैं।
$ ४२३. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागबन्ध और उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके अनन्तवें भागरूपसे ही सर्वदा उदय और उदीरणाकी प्रवृत्ति देखी जाती है। .
* उनसे उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध, संक्रम और सत्कर्म अनन्तगुणे हैं। $ ४२४. क्योंकि संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मिथ्यादृष्टिके सर्वोत्कृष्ट संक्लेशसे बन्धको प्राप्त न्यूनाधि कतासे रहित उत्कृष्ट अनुभागका यहाँ पर ग्रहण किया है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभाग उदय और उदीरणा स्तोक हैं। __$ ४२५. क्योंकि इनके उत्कृष्ट अनुभाग और उत्कृष्ट सत्कर्मके अन्तिम स्पर्धकसे अनन्तगुणे हीन स्पर्धकरूप उदय और उदीरणाकी सर्वदा प्रवृत्ति देखी जाती है।
* उनसे उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम और सत्कर्म अनन्तगुणे हैं । $ ४२६. क्योंकि कुछ भी घातको प्राप्त किये विना स्थित अपने-अपने उत्कृष्ट अनुभागरूपसे इन्होंने उत्कृष्टपना प्राप्त किया है।
इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग समाप्त हुआ। * इसके आगे जघन्य अन्पबहुत्व प्रकृत है ।