Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 361
________________ ३४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे - [वेदगो संजमाहिमुहचरिमसमयुक्कस्सविसोहीए उदीरिजमाणजहण्णाणुमागं पेक्खियूण हदसमुप्पत्तियं कादणावद्विदसव्वविसुद्धसुहमेइंदियविसोहीए उदीरिजमाणजहण्णाणुभागो अणंतगुणो, पुग्विल्लविसोहीदो एत्थतणविसोहीए अणंतगुणहीणत्तदंसणादो । एदम्हादो पुण तस्सेव सुहुमेइंदियस्स हदसमुप्पत्तियजहण्णाणुभागसंतकम्ममणंतगुणं, संतकम्माणंतिमभागे चेव सव्वत्थ उदयोदीरणाणं पवुत्तिदंसणादो । तदो एवंविहसुहुमेइंदियहदसमुप्पत्तियजहण्णाणुभागविसयत्तादो मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं जहण्णसंकमसंतकम्माणि अणंतगणाणि त्ति सिद्धं । अणंताणुबंधीणं पुण संजुत्तपढमसमयजहण्णबंध'विसयो अणुभागो जहण्णसंकम-संतकम्मसरूवो जइ वि सुहुमाणुभागादो अणंतगुणहीणो तो वि संजमाहिमुहचरिमसमयजहण्णोदयोदीरणाहिंतो अणंतगुणो चेय, संजमाहिमुहचरिमविसोहिं पेक्खियूण संजुत्तपढमसमयविसोहीए अणंतगुणहीणत्तदंसणादो। * सम्मत्तस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्ममुदयो च थोवाणि । ४३१. कुदो ? अणुसमयोवट्टणाघादेण सुटु घादं पावियूण द्विदकदकरणिजचरिमसमयजहण्णाणुभागसरुवत्तादो। * जहणिया अणुभागुदीरणा अणंतगुणा। प्रकारके स्वामित्वका अवलम्बन लेने पर पूर्वके जघन्य अनुभाग उदय और उदीरणाके स्वामीसे इसका अनन्तगुणत्व संदिग्ध भी नहीं है, क्योंकि स्पष्टरूपसे यह अनन्तगुणा उपलब्ध होता है । यथा-संयमाभिमुख अन्तिम समयवर्ती उत्कृष्ट बिशुद्धिसे उदीर्यमाण जघन्य अनुभागको देखते हुए हदसमुत्पत्ति करके अवस्थित सर्वविशुद्ध सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी विशुद्धिसे उदीर्यमाण जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है, क्योंकि पूर्वकी विशुद्धिसे यहाँकी विशुद्धि अनन्तगुणी होन देखी जाती है। तथा इस उदीयमाण जघन्य अनुभागसे उसी सूक्ष्म एकेन्द्रियका हतसमुन त्पत्तिक जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है, क्योंकि सत्कर्मोके अनन्तवें भागमें ही सर्वत्र उदय और उदीरणाकी प्रवृत्ति देखी जाती है। इसलिए इस प्रकारके सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी जघन्य अनुभागको विषय करनेवाला होनेसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभाग संक्रम और जघन्य अनुभाग सत्कर्म अनन्तगुणे हैं यह सिद्ध हुआ। तथा अनन्तानुबन्धियोंका संयुक्त प्रथम समयके जघन्य बन्धको विषय करनेवाला अनुभाग जघन्य संक्रम और सत्कर्मस्वरूप होकर भी यद्यपि सूक्ष्म एकेन्द्रियके अनुभागसे अनन्तगुणा हीन है तो भी संयमके अभिमुख हुए जीवके अन्तिम समयवर्ती उदय और उदीरणारूप अनुभागसे अनन्तगुणा ही है, क्योंकि संयमाभिमुख अन्तिम विशुद्धिको देखते हुए संयुक्त प्रथम समयकी विशुद्धि अनन्तगुणी देखी जाती है। -- * सम्यक्त्वके जघन्य अनुभाग सत्कर्म और उदय स्तोक हैं । $ ४३१. क्योंकि प्रति समय अपवर्तनाघातके द्वारा प्रचुर घातको पाकर स्थित हुआ वह कृतकृत्यवेदकके अन्तिम समयमें जघन्य अनुभागस्वरूप है। * उनसे जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है ।

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