Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 355
________________ ३३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो ७ संतकम्ममुदयो च जहण्णभावं पडिवजदे। तदो सव्वेसिमेयद्विदिपमाणशादो थोवत्तमिदि सिद्धं । * जट्ठिदिउदयो जट्ठिदिसंतकम्मं च तत्तियं चेव। 5 ४००. किं कारणं ? उहयत्थ जहण्णहिदीदो जट्ठिदीए भेदाणुवलंभादो। * जहिदिउदीरणा संकमो च असंखेजगुणा। $ ४०१ कुदो ? समयाहियावलियपमाणात्तादो । * जहण्णगो हिदिवंधो संखेजगुणो । $ ४०२. किं कारणं ? अणियट्टिकरणचरिमद्विदिबंधस्स अंतोमुहुत्तपमाणस्साबाहाए विणा गहिदत्तादो। * जहिदिबंधो विसेसाहियो। $ ४०३. कुदो ? जहण्णाबाहाए वि एत्थंतब्भावदंसणादो। * इत्थि-णवंसयवेदाणं जहण्णहिदिसंतकम्ममुदयोदीरणा च थोवाणि । ४०४. कुदो ? एगहिदिपमाणत्तादो । * जट्ठिदिसंतकम्मं जट्ठिदिउदयो च तत्तियो चेव । $ ४०५. किं कारणं ? एत्थ जट्ठिदीए जहण्णहिदीदो भेदाणुवलंभादो । शेष रहने पर स्थितिसंक्रम और स्थितिउदीरणा ये जघन्य होते हैं तथा उसी जीवके अन्तिम समयमें स्थितिसत्कर्म और स्थिति उदय. जघन्यपनेको प्राप्त होते हैं, इसलिए सबके एक स्थितिप्रमाण होनेसे स्तोकपना है यह सिद्ध हुआ। * यस्थिति उदय और यस्थितिसत्कर्म उतना ही है । ६४८०. क्योंकि उभयत्र जघन्य स्थितिसे यस्थितिमें भेद नहीं पाया जाता। * उनसे यत्स्थितिउदीरणा और यत्स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणे हैं। ६४०१. क्योंकि ये एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण हैं। * उससे जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। ६४०२. क्योंकि अनिवृत्तिकरणका आबाधा कम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तिम स्थितिबन्ध यहाँ लिया गया है। * उससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। $ ४०३. क्योंकि जघन्य आबाधाका भी इसमें अन्तर्भाव देखा जाता है। * स्त्रीवेद और नकवेदके जघन्य स्थितिसत्कर्म, उदय और उदीरणा स्तोक हैं। $ ४०४. क्योंकि ये एक स्थितिप्रमाण हैं। * यत्स्थितिसत्कर्म और यत्स्थिति उदय उतने ही हैं। ६४०५. क्योंकि यहाँ यत्स्थितिका जघन्य स्थितिसे भेद नहीं पाया जाता।

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