Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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बंधादिपंचपदप्पा बहुअं
* जाओ संकामिज्जंति ताओ विसेसाहियाओ ।
$ ३५० कुदो १ सत्तावीसपर्यडिपमाणत्तादो ।
* संतकम्मं विसेसाहियं ।
$ ३५१ कुदो ? अट्ठावीस मोहपयडीण मुकस्ससंतकम्मभावेण समुवलंभादो | एवं पयडीहि उकस्सप्पाबहुअं समत्तं ।
$ ३५२. संपहि पयडीहि जहण्णप्पा बहुअगवेसणट्टमाह-
* जहण्णाओ जाओ पयडीओ बज्भंति संकामिज्जति उदीरिज्जंति उदण्णाओ संतकम्मं च एक्का पयडी ।
गा० ६२ ]
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$ ३५३. तं जहा – बंधेण ताव जहण्णेण लोहसंजलणसण्णिदा एक्का चैव पयडी होदि, अणियट्टम्म मायासंजलणबंधवोच्छेदे तदुवलंभादो । संकमो वि मायासंजलणसदा किस्से चैव पयडीए होइ, माणसंजलणसंकमवोच्छेदे तदुवलंभादो | उदयोदीरण-संतकम्माणं पि जहण्णभावो अणियट्टि -सुहुमसांपराइएस घेत्तव्वो । एवमेदासिं जहणणबंध - संकम- संतकम्मोदयदीरणाणमेयपयडिपमाणत्तदो णत्थि अप्पाचहुअ
* जो प्रकृतियाँ संक्रमित होती हैं वे उनसे विशेष अधिक हैं ।
$ ३५० क्योंकि वे सत्ताईस प्रकृतिप्रमाण हैं ।
* उनसे सत्कर्मरूप प्रकृतियाँ विशेष अधिक हैं ।
३२३
$ ३५१. क्योंकि उत्कृष्ट सत्कर्मरूपसे अट्ठाईस मोहप्रकृतियोंकी उपलब्धि होती है । इस प्रकार प्रकृतियों की अपेक्षा उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
$ ३५२. अब प्रकृतियोंकी अपेक्षा जघन्य अल्पबहुत्वका अनुसन्धान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* जघन्यरूपसे जो प्रकृतियाँ बँधती हैं, संक्रमित होती हैं, उदीरित होती हैं, उदयको प्राप्त होती हैं तथा सत्कर्मरूपमें हैं वह एक प्रकृति है ।
$ ३५३. खुलासा इस प्रकार है - बन्धकी अपेक्षा तो कमसे कम लोभसंज्वलन संज्ञावाली एक ही प्रकृति है, क्योंकि अनिवृत्तिकरणमें मायासंज्वलनकी बन्धव्युच्छित्ति होने पर उसकी उपलब्धि होती है । संक्रमरूप भी मायासंज्वलन संज्ञावाली एक ही प्रकृति है, क्योंकि मानसंज्वलनके संक्रमकी व्युच्छित्ति होने पर उसकी उपलब्धि होती है । उदय, उदीरणा और सत्कर्मका भी जघन्यपना अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय में ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार इन जघन्य बन्ध, जघन्य संक्रम, जघन्य सत्कर्म, जघन्य उदय और