Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३३० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो ७ ६ ३७४. किं कारणं ? एगद्विदीदो दुसमयकालद्विदीए दुगुणत्तुवलंभादो । * जहिदिउदीरणा असंखेनगुणा। $ ३७५ कुदो १, समयाहियावलियपमाणसादो। * जहण्णओ हिदिसंतकम्मो असंखेनगुणो।
३७६. कुदो ? पलिदो० असंखे०मागपमाणचादो। * जहण्णओ हिदिबंधो असंखेजगुणो।
5 ३७७ किं कारणं ? सव्वविसुद्धबादरेइंदियपजलस्स पलिदोवमासंखेजमागपरिहीणसागरोवममेराजहण्णहिदिबंधग्गहणादो ।
* सम्मत्तस्स जहण्णगं ठिविसंतकम्मं संकमो उदीरणा उदयो च एगा विट्ठी।
$३७४. क्योंकि एक स्थितिसे दो समयकालवाली स्थिति दुगुनी उपलब्ध होती है। * उससे यस्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। ३७५. क्योंकि वह एक समय अधिक एक आकलिप्रमाण है।
विशेषार्थ- यहाँ पर मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिउदय और जघन्य यत्स्थितिउदय ये दोनों एक ही हैं, क्योंकि यहाँ पर जो उदयरूप निषेक है उसकी कालकी अपेक्षा स्थिति भी एक ही समयप्रमाण है, इसलिए प्रकृतमें जघन्य यस्थिति उदयको पूर्वोक्त जघन्य स्थिति उदीरणा आदिके समान कहा है। मात्र जघन्य स्थितिसत्कर्मका निषेक तो एक है और उसकी कालकी अपेक्षा स्थिति दो समय है, इसलिए प्रकृतमें यस्थितिउदयसे यस्थितिसत्कर्मको संख्यातगुणा कहा है। इसी प्रकार जघन्य स्थिति उदीरणा एक निषेकप्रमाण है और उसकी कालकी अपेक्षा स्थिति एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण है, इसलिए प्रकृतमें जघन्य यस्थितिसत्कर्मसे जघन्य यत्स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी कही है। यहाँ सर्वत्र यस्थितिपदसे निषेकस्थितिको ग्रहण न कर यथास्थान विवक्षित निषेकोंकी कालकी अपेक्षा स्थिति ली गई है।
* उससे जघन्य स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है । ६३७६. क्योंकि वह पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
* उससे जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। $ ३७७. क्योंकि सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवके पल्योपमके असंख्यातवें भागहीन सागरोपमप्रमाण जघन्य स्थितिबन्धका यहाँ पर ग्रहण किया है।
- विशेषार्थ—यहाँ पर जघन्य स्थितिसत्कर्मसे दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय मिथ्यात्वका जो जघन्य स्थितिसत्कर्म प्राप्त होता है उसका ग्रहण किया गया है। जघन्य स्थितिबन्धका स्पष्टीकरण मूलमें किया ही है। . ____ * सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसत्कर्म, संक्रम, उदीरणा और उदय एक स्थितिप्रमाण है।