Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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बंधादिपंचपदप्पाबहुअणि सो
* बारसकसायाणं जहण्णयं द्विदिसंतकम्मं थोवं ।
$ ३८६. कुदो १ एमडिदिपमाणत्तादो ।
* जट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं ।
गो० ६२ ]
$ ३८७ कुदो ? दुसमयकालट्ठिदिपमाणत्तादो । * जहण्णगो द्विदिसंकमो असंखेज्जगुणो ।
९ ३८८. कुदो ? पलिदोवमासंखेज्जभागपमाणचादो ।
* जहण्णगो ट्ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो ।
§ ३८९. किं कारणं १ सव्वविसुद्ध बादरे इंदियजहण्णट्ठिदिबंधस्स गहणादो । * जहण्णिया ट्ठिदिउदीरणा विसेसाहिया ।
९. ३९० कुदो ! सव्वविद्धबदिरेइंदियस्स जहण्णडिदिबंधादो विसेसाहियहद समुप्पत्तियजहण्णट्ठिदिसंतकम्मविसयत्तेण पडिलद्धजहण्णभावत्तादो ।
* जहण्णगो ठिदिउदयो विसेसाहियो ।
$ ३९१. केचियमेचो विसेस १ एगट्ठिदिमेचो । कुदो ? उदयट्ठिदीए वि एत्थंतभावदंसणादो ।
* तिन्हं संजलणाणं जहण्णिया ठिदिउदीरणा थोवा ।
* बारह कषायोंका जघन्य स्थितिसत्कर्म स्तोक है ।
९ ३८६. क्योंकि उसका प्रमाण एक स्थिति 1 * उससे यत्स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
३३३
$ ३८७. क्योंकि वह दो समय कालस्थितिप्रमाण है ।
* उससे जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
$ ३८८, क्योंकि वह पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
* उससे जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है ।
$ ३८९. क्योंकि सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रियके जघन्य स्थितिबन्धका ग्रहण किया है। * उससे जघन्य स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है ।
$ ३९०. क्योंकि सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रियके जघन्य स्थितिबन्धसे विशेष अधिक इतसमुत्पत्तिक जघन्य स्थिति सत्कर्म इसका विषय है । वह यहाँ जघन्यपनेको प्राप्त है ।
* उससे जघन्य स्थिति उदय विशेष अधिक है ।
९ ३९१. शंका – विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान ——- एक स्थितिमात्र है, क्योंकि उदयस्थितिका भी यहाँ अन्तर्भाव देखा जाता है । * तीन संज्वलनोंकी जघन्य स्थिति उदीरणा स्तोक है ।