Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ ____३६० मिच्छत्स्स उक्स्सद्विदि बंधिय अंतोमुहुनपडिभग्गेण वेदगसम्म पडिवण्णे सम्मनस्स उक्कस्सटिदिसंतकम्ममंतोमुहुत्तूणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तं होइ। पुणो तं संतकम्मं सम्माइट्ठिविदियसमए उदयावलियबाहिरादो ओकट्टियण वेदमाणस्स उकस्सहिदिउदीरणा उक्कस्सहिदिसंकमो च होदि । तेण कारणेणंतोमुहुत्तणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ आवलियूणाओ सम्मत्तस्स संकामिजमाणोदीरिजमाण द्विदीओ होति ति थोवाओ जादाओ।
* उदिण्णाओ विसेसाहियाओ।
$ ३६१. केचियमेत्तो विसेसो ? एगट्ठिदिमेत्तो । किं कारणं ? तत्कालवेदिजमाणुदयविदीए वि एत्थंतब्भावदसणादो।
* संतकम्मं विसेसाहियं ।
३६२. केत्तियमेत्तो विसेसो ? संपुण्णावलियमेत्तो । किं कारणं ? सम्माइट्ठिपढमसमए गलिदेगट्टिदीए सह समयूणुदयावलियाए एत्थ पवेसुवलंभादो।
* सम्मामिच्छत्तस्स जाओ द्विदीओ उदीरिजति ताओ थोवाओ। $३६०. मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कर अन्तर्मुहूर्तमें प्रतिभग्न हुए जीवके वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेपर सम्यक्त्वका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण होता है। पुनः उस सत्कर्मका सम्यग्दृष्टिके दूसरे समयमें उदयावलिके बाहरसे अपकर्षण कर वेदन करनेवाले जीवके उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा और उत्कृष्ट स्थिति संक्रम होता है। इस कारण अन्तर्महर्त कम सत्तर कोडाकोडी सागरोपममेंसे एक आवलिकम सब स्थितियाँ सम्यक्त्वकी संक्रमित होनेवाली और उदीर्यमाण स्थितियाँ होती हैं, इसलिए वे स्तोक हैं।
* उनसे उदयरूप स्थितियाँ विशेष अधिक हैं । $ ३६१. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान—एक स्थितिमात्र है, क्योंकि तत्काल वेद्यमान उदय स्थितिका भी यहाँ पर अन्तर्भाव देखा जाता है।
* उनसे सत्कर्म विशेष अधिक है। $ ३६२. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-सम्पूर्ण आवलिमात्र है, क्योंकि सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें गलित हुई एक स्थितिके साथ एक समय कम उदयावलिका यहाँ प्रवेश देखा जाता है।
विशेषार्थ-तात्पर्य यह है कि जो मिथ्यात्वकी अन्तर्मुहूर्तकम उत्कृष्ट स्थितिके साथ वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होता है उसके सम्यक्त्वको प्राप्त करनेके प्रथम समयमें पूर्वमें कहे अनुसार स्थितियाँ उदीरित होती हैं वे स्तोक हैं।
* सम्यग्मिथ्यात्वकी जो स्थितियाँ उदीरित होती हैं वे स्तोक हैं ।