Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० ६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुअं
३२५ द्विदीहितो विसेसाहियाओ त्ति सुत्तत्थसंबंधो। कुदो एदासि विसेसाहियत्तं ? बंधावलियाए उदयावलियाए च ऊणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिपमाणत्तादो ।
* उदिण्णाओ विसेसाहियाओ। . .
5 ३५७. तं कथं ? उदीरिजमाणद्विदीओ सव्वाओ चेव उदिण्णाओ। पुणो तत्कालवेदिजमाणउदयद्विदी वि उदिण्णा होइ, पत्तोदयकालत्तादो। तदो एगट्ठिदिमेत्तेण विसेसाहियत्तमेत्थ घेत्तव्यं । ।
* संतकम्मं विसेसाहियं ।
$ ३५८. कुदो ? संपुण्णसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिपमाणत्तादो। केत्तियमेत्तो विसेसो ? समयूणदोआवलिमेत्तो, बंधावलियाए सह समयूणुदयावलियाए एत्थ पवेसुवलंभादो।
* एवं सोलसकसायाणं ।
३५९. सुगममेदमप्पणासुत्तं, अप्पाबहुआलावकयविसेसाभावणिबंणत्तादो ।
* सम्मत्तस्स उक्कस्सेण जाओ हिदीओ संकामिज ति उदीरिज ति च ताओ थोवाओ। मिथ्यात्वकी संक्रमित होनेवाली और उदीरित होनेवाली स्थितियाँ समान होकर पूर्व की बध्यमान स्थितियोंसे विशेष अधिक हैं इस प्रकार स्त्रका अर्थके साथ सम्वन्ध है।
शंका-इनका विशेषाधिकपना किस कारणसे है ?
समाधान—क्योंकि ये क्रमसे बन्धावलि और उदयावलिसे न्यून सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण हैं।
* उनसे उदयरूप स्थितियाँ विशेष अधिक हैं। $ ३५७. वह कैसे ? क्योंकि उदीर्यमाण सभी स्थितियाँ उदयरूप हैं। तथा तत्काल वेद्यमान स्थिति भी उदयरूप है, क्योंकि उसका उदयकाल प्राप्त है। इसलिए उदीर्यमाण स्थितियोंसे उदयरूप स्थितियाँ एक स्थितिमात्र विशेष अधिक हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
* उनसे सत्कर्म विशेष अधिक है। $ ३५८. क्योंकि सत्कर्मरूप स्थितियोंका प्रमाण पूरा सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान—एक समय कम दो आवलिप्रमाण है, क्योंकि बन्धावलिके साथ एक समय कम उदयावलिका यहाँ प्रवेश उपलब्ध होता है।
___ * इसी प्रकार सोलह कषायोंके विषयमें जानना चाहिए। - ३५९. यह अर्पणासूत्र सुगम है, क्योंकि अल्पबहुत्व आलापकृत विशेषभाव इसका कारण है। ___ * सम्यक्त्वकी उत्कृष्टरूपसे जो स्थितियाँ संक्रमित होती हैं और उदीरित होती हैं वे स्तोक हैं।