Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३२० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ ___ जो जं संकामेदि य ज बंधदि जं च जो उदीरेदि।
तं होइ केण अहियं डिदि-अणुभागे पदेसग्गे ॥३२॥ त्ति $३४५. पुन्विल्लेहिं तीहिं गाहासुत्तेहिं पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेसविसयासु उदयोदीरणासु सवित्थरं विहासिय समत्तासु किमट्ठमेसा चउत्थी गाहा समोइण्णा त्ति ? तासिं चेव उदयोदीरणाणं पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेसविसयाणं बंध-संकम-संतकम्मेहिं सह जहण्णुकस्सपदेहि अप्पाबहुअं परूवणट्ठमेसा गाहा समागदा । तं जहा. ३४६. 'जो जं संकामेदि य' इच्चेदेण सुत्तावयवेण संकमो गहिदो। 'जं बंधदि' त्ति एदेण वि बंधो गहेयव्यो । एदेणेव संतकम्मस्स वि गहणं कायव्यं, बंधस्सेव विदियादिसमएसु संतकम्मववएसोववत्तीदो । 'जं च जो उदीरेदि' त्ति एदेण वि उदयोदीरणाणं दोण्हं पि संगहो कायव्यो, उदीरणाणिद्देसस्स देसामासयत्तादो। एदेसिं च पंचण्हं पदाणं जहण्णुक्कस्सभावविसेसिदाणमेक्कमेक्केण सह अप्पाबहुअं कायव्वमिदि जाणावणटुं 'तं केण होइ अहियं' ति भणिदं । एदेसिं च संकमादिपदाणं पयडि-द्विदिअणुभाग-पदेसविसयत्तजाणावणटुं 'हिदि-अणुभागे पदेसग्गे' त्ति विसेसणं । ण च एत्थ अर्थका उपसंहार करके अब चौथी गाथाके अर्थका व्याख्यान करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धका अवतार करेंगे
* जो जीव स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंमें से जिसे संक्रमित करता है, जिसे बाँधता है और जिसे उदीरित करता है वह किससे अधिक होता है ॥६२॥
$३४५. शंका-पूर्वकी तीन गाथाओं द्वारा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविषयक उदय-उदीरणाका विस्तारके साथ व्याख्यान समाप्त होने पर यह चौथी गाथा किसलिए आई है।
समाधान-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविषयक उन्हीं उदय और उदीरणाके बन्ध, संक्रम और सत्कर्म के साथ जघन्य और उत्कृष्ट विशेषण सहित अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए वह गाथा आई है । यथा
$ ३४६. उक्त गाथामें आये हुए 'जो जं संकामेदि' इस सूत्रवचन द्वारा संक्रमको ग्रहण किया है। 'जं बंधदि' इस पदद्वारा भी बन्धको ग्रहण करना चाहिए। तथा इसी पदद्वारा सत्कर्मको भी ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि बन्धकी ही द्वितीयादि समयोंमें सत्कर्म संज्ञा बन जाती है। 'जं च जो उदोरेदि' इस पद द्वारा भी उदय और उदीरणा इन दोनोंका भी संग्रह करना चाहिए, क्योंकि यहाँ पर उदीरणा पदका निर्देश देशामर्षक है। जघन्य और उत्कृष्ट विशेषण युक्त इन्हीं पाँचों पदोंका एकका एकके साथ अल्पबहुत्व करना चाहिए इस बातका ज्ञान कराने लिए उक्त गाथामें 'तं केण होइ अहियं' यह पद कहा है। तथा ये संक्रमादिक प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविषयक होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए उक्त गाथामें हिदि अनुभागे पदेसग्गे' यह विशेषण दिया है। यहाँ पर उक्त पदमें 'प्रकृति' पदका