Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 330
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो ३११ पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि सम्म०--सम्मामि०--इत्थिवे०--पुरिसवे० अबढि०अवत्त० संखे०भागो ! मणुसपज्ज० मणुसिणी०--सव्वट्ठदेवा० भुज०--अप्प० ओघं । सेसपदा० संखे०भागो । एवं जाव० ।। ३२२. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-- सोलसक०--सत्तणोक० सम्बपदा० के० ? अणंता । णवरि मिच्छ०-णस० अवत्त० के० ? असंखेजा। सम्म०--सम्मामि०--इथिवे०-पुरिसवे० सव्वपदा केत्तिया ? असंखेजा । एवं तिरिक्खा० । ३२३. सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख--मणुसअपज०-देवा जाव णवगेवजा त्ति सव्वपयडीणं सव्वपदा० के० १ असंखेजा । मणुसा पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि मिच्छ०-णस० अवत्त० सम्म०--सम्मामि०-इत्थिवेद--पुरिसवेद. सव्वपदा के० ? संखेजा। पजत्त-मणुसिणी--सव्वट्ठदेवा० सव्वपयडी० सव्वपदा० के० ? संखेजा। अणुदिसादि--अवराजिदा त्ति सव्वपयडी० सव्वपदा० के० १ असंखेज्जा । णवरि सम्म० अवत्त० के० ? संखेज्जा । एवं जाव० । ३३२४. खेत्तं पोसणं भुजगारअणुभागउदीरणाए भंगो । हैं । सामान्य मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भंग है। इतनो विशेषता है कि सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अवस्थित और अवक्तव्य पदके उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं। मनुष्यपर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका भंग ओघ के समान है। शेष पद प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। 5 ३२२. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पद प्रदेशउदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेद के सब पद प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। .६ ३२३. सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । सामान्य मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सब पद प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात है। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ३२४. क्षेत्र और स्पर्शनका भंग भुजगार अनुभाग उदीरणाके समान है।

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