Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 328
________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो ३०९ देवोपं । अपट्टि० जह० एयस०, उक्क तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि पलिदो० सादिरे० पलि. सादि० । सोहम्मीसाण. इत्थिवेद० देवोघं । उवरि इत्थिवेदो णत्थि । ३१७. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० भुज-अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । अवढि० जह० एयस०, उक्क. सगहिदी देसूणा । अवत्त० णत्थि अंतरं । एवं पुरिसवे० । णवरि अवत्त० णस्थि । एवं बारसक०-छण्णोक० । णवरि अवत्त. जह० उक्क० अंतोमु० । एवं जाव० ।। ३१८. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओपेण मिच्छ०-णस० तिण्णि पदा णियमा अत्थि,सिया एदेय अवत्तव्वगो च, सिया अरति और शोकका भंग सामान्य देवोंके समान है। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें स्त्रीवेदके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका भंग सामान्य देवोंके समान है । अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम, साधिक एक पल्योपम और साधिक एक पल्योपम है। सौधर्म और ऐशान कल्पमें स्त्रीवेदका भंग सामान्य देवोंके समान है । आगेके देबोंमें स्त्रीवेद नहीं है। विशेषार्थ-सामान्य देवोंमें सम्यक्त्व प्रकृतिकी उदीरणा तेतीस सागरोपम काल तक बन जाती है, इसलिए इनमें उसके अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम बन जानेसे वह उक्त काल प्रमाण कहा है। अरति और शोककी उदीरणाका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे यहाँ हास्य और रतिके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा हास्य और रतिकी उदीरणाका उत्कृष्ट काल छह महीना होनेसे यहाँ इन्हींके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना कहा है। इतना अवश्य है कि दोनों जगह प्रारम्भ और अन्तमें अवक्तव्य पद करा कर यह अन्तरकाल घटित करना चाहिए। अरति और शोककी कमसे कम एक समयके अन्तरसे भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य उदीरणा हो और अधिकसे अधिक छह महीनेके अन्तरसे हो यह सम्भव है, इसलिए यहाँ इनके भुजगार अल्पतर और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है। $ ३१७. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहर्त है। अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार बारह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अनाहारक मागेणातक जानना चाहिए। .. ३१८. नाना जीवोंका अवलम्बन लेकर भंगविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके तीन पद प्रदेशउदीरक जीव

Loading...

Page Navigation
1 ... 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408