Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
कालंतरेहिंती साहियूण भाणियव्वाणि, अत्थि समप्पणापरमेदं सुतं ।
$ १७४. संपहि एदेण सुत्तेण सूचिदत्थविहासणमुच्चारणाणुगममेत्थ कस्सामो | तं जहा - णाणाजीवेहिं भंगविचओ दुविहो – जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिसो – ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - सम्म ०[० - सोलसक० - णवणोक० उक्कस्सपदेसस्स सिया सव्वे अणुदीरगा, सिया अणुदीरगा च उदीरगो च, सिया अणुदीरगा च उदीरगा च । एवमणुक्क० तिण्णि भंगा । णवरि उदीरगा पुव्वा कादव्वा । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० अट्ठ भंगा । सव्वासु गदीसु जाओ पयडीओ उदीरिजंति तासिमोघं । णवरि मणुसअपज० उक्क० अणुक्क० अट्ठ भंगा। एवं जाव० । एवं जयं पि दव्वं ।
२५४
[ वैदगो ७
$ १७५. भागाभागाणु० दुविहं- जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो — ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० उक्क ९ पदेसुदी० सव्वजी० के० भागो ? अनंतभागो । अणुक्क० अणंता भागा। सम्मामि ० - इत्थिवेद - पुरिसवेद० उक्क० पदे० केव ० १ असंखे० भागो । असंखेज्जा भागा । एवं तिरिक्खा ० ।
सम्म०अणुक्क ०
और अन्तरसे साध कर कहलाना चाहिए। इस प्रकार यह समर्पणापरक सूत्र है ।
$ १७४. अब इस सूत्र द्वारा सूचित हुए अर्थका विशेष स्पष्टीकरण करनेके लिए उच्चारणाका अनुगम यहाँ पर करेंगे । यथा-नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय दो प्रकारका हैजघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके कदाचित् सब जीव अनुदीरक हैं, कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और एक जीव उदीरक है, कदाचित् नाना जीव अनुदीरक है और नाना जीव उदीरक हैं । इसी प्रकार अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाकी अपेक्षा तीन भंग जानने चाहिए। इतनी विशेषता है कि उदीरकोंको पहले करना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाकी अपेक्षा आठ भंग होते हैं। सब गतियोंमें जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा है उनका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकों में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाकी अपेक्षा आठ भंग हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार जघन्यका भी कथन करना चाहिए ।
1
$ १७५. भागाभागानुगम दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण है ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार तिर्यों में जानना चाहिए ।