Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 306
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २८७ २५५. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० जह० पदे० उदी० बारसक० - छण्णोक० सिया तं तु चट्टा० । पुरिसवेद० णियमा तं तु चउट्ठाणप० । एवं पुरिसवेद० । $ २५६. अपच्चक्खाणकोध० जह० पदे० उदी० सम्म० दोण्डं कोधाणं पुरिसवेद० णिय० तं तु चउट्ठाणप० । छण्णोक० सिया तं तु चउट्ठा० । एवमेक्कारसक० । $ २५७. हस्सस्स जह० पदे० उदीरें० सम्म० - पुरिसवे ० - रदि० निय० तं तु चउट्ठा० । बारसक० -भय-दुगुंछ ० सिया तं तु चउट्ठा० । एवं रदीए। एवमरदि-सोग० । २५८. भयस्स जह० पदे० उदी० सम्म० - पुरिसवे० णिय० तं तु चउट्ठा० । होती । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म - ऐशान कल्पतक के देवोंमें जानना चाहिए । सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ प्रवेयकतकके देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुषवेदको ध्रुव करना चाहिए । । 1 $ २५५. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें सम्यक्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त देव बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है | यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । इसी प्रकार पुरुषवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २५६. अप्रत्याख्यान क्रोधकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त देव सम्यक्त्व, दो क्रोध और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । इसी प्रकार ग्यारह कषायोंको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २५७. हास्यकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त देव सम्यक्त्व, पुरुषवेद और रतिका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । बारह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २५८. भवकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त देव सम्यक्त्व और पुरुष वेदका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश दोरक है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है, तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य

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