Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 321
________________ ३०२ जग्रधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ $ ३०६. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । आघेण मिच्छ०अनंता ०-४ सव्वपदा कस्स १ अण्णद० मिच्छाइट्ठिस्स । सम्म० सव्वपदा कस्स ? दरस सम्मासि । सम्मामि० सव्वपदा कस्स ? अण्णद० सम्मामिच्छाइट्ठिस्स । बारसक० - णवणोक० सव्वपदा कस्स ? अण्णद० सम्माइट्टि० मिच्छाइडि० । 1 $ ३०७. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - सम्म० - सम्मामि ० - सोलसक० - सत्तणोक० ओघं । णवरि णवंस अवत्त० णत्थि । एवं सव्वणिरय० । तिरिक्खेसु ओघं । णवरि तिन्हं वेदाणं अवत्त० मिच्छाइट्ठिस्स । एवं पंचिदियतिरिक्खतिये । णवरि वेदा जाणिroar | जोणिणी इत्थवे० अवत्त० णत्थि । ९३०८, पंचिदियतिरिक्खअपज० - मणुस अपज ० - अणुद्दिसादि सव्वद्वा ति सव्वपय० सव्वपदा कस्स १ अण्णदरस्स । मणुसतिये ओघं । णवरि वेदा जाणियव्वा । • मणुसिणोसु इथिवे अवत्त० सम्माइट्ठि ० | देवेसु ओघं । णवरि ण स णत्थि । इत्थिषे० - पुरिसवे० अवत्त० णत्थि । एवं भवणादि जाव सोहम्मा ति । एवं सणकुमारादि जाव णवगेवजा त्ति । णवरि इत्थिवेदो णत्थि । एवं जाव० । $ ३०९. कालानुगमेण दुविहोणिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडी० 2 $ ३०६. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे . मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होते हैं । सम्यक्त्वके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होते हैं । सम्यग्मिथ्यात्वके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्मिध्यादृष्टिके होते हैं। बारह कषाय और नौ नोकषायोंके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टिके होते हैं । $ ३०७. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेदका अवक्तव्यपद नहीं है । इसी प्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए । तिर्यों में ओघ के समान भंग है । इतनी विशेषता है कि तीन वेदोंका अवक्तव्य पद मिथ्यादृष्टिके होता है । इसी प्रकार पचेन्द्रियतिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वेद जानना लेने चाहिए । तिर्य योनिनियों में स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। ३०८. पन्द्रियतिर्यच अपर्याप्त मनुष्य अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक देवों में सब प्रकृतियोंके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतरके होते हैं। मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि वेद जान लेने चाहिए । मनुष्यिनियों में स्त्रीवेदका अवक्तव्यपद सम्यग्दृष्टिके होता है । देवोंमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है । तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदका अवक्तव्यपद नहीं है। इ प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म-ऐशान कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । इसी प्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । § ३०९. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट -

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