Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए अप्पाबहुअं
२८०. सामित्त मेदाभावे वि पयडिविसेसमस्सियूण विसेसाहियत्तसिद्धीए निव्वाहमुवलंभादो |
* सम्मत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । $ २८१. एत्थ कारण मोघसिद्धं ।
* णवुंसयवेदस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा अनंतगुणा । $ २८२. कुदो १ देसघादिमाहप्पादो ।
* भय-दुगुंछाणमुक्कस्सिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया ।
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२८३. तं जहा - णिरयगदीए तिन्हं वेदाण मसंखेज लोगपडिभागियं दव्वं नर्बु सयवेदसरू वेणुदीरिजमाणं घेतूण एगधुवपयडिपमाणमुदोरणदव्वं होदि । भयदुर्गुछाणं पुण पादेवकं धुवपयडिपमाण मुदीरणदव्यमुवलंभइ, तेसिं धुवबंधित्तादो । किंतु वेदभागं पेक्खियूण पयडिविसेसेण विसेसहीणं होदि । होंतं पि भय-दुगु छाणं दोन्हं पि दव्वं तदण्णदरसरूवेणुदीरिज माणमुवलब्भदे, थिबुक्कसंकमवसेण तेसिमण्णोण्णाणुष्पवेसं कादृणुक्कस्ससामित्तावलंबणादो । एवं लब्भदित्ति काढूण जदि वेदभागो तत्थेगदव्वं पेक्खियूण पयडिविसेसेणन्महिओ तो दोन्हमव्यो गाढदव्य समुदायादो विसेसहीणां चैत्र होइ, किंचूणद्धमेतदव्वेण परिहीणत्तदंसणादो । तदो किंचूणद्गुणपमाणत्तादो विसेसाहियमेदं दव्यमिदि सिद्धं ।
$ २८०. क्योंकि स्वामित्वका भेद नहीं होने पर भी प्रकृतिविशेषका आश्रय कर विशेषाधिकपनेकी सिद्धि निर्बाध पाई जाती है ।
* उससे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है ।
$ २८१. यहाँ पर कारण ओघसिद्ध है ।
* उससे नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा अनन्तगुणी है ।
$ २८२. क्योंकि देशघातिके माहात्म्यवश प्रकृत उदीरणा अनन्तगुणी है ।
* उससे भय जुगुप्साकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है ।
§ २८३. यथा—नरकगतिमें असंख्यात लोकका भाग देने पर तीन वेदोंका जो द्रव्य प्राप्त हो उसे नपुंसक वेदरूपसे उदीर्यमाण ग्रहण कर एक ध्रुव प्रकृतिप्रमाण उदीरणा द्रव्य है । परन्तु भय और जुगुप्सामें से प्रत्येकका ध्रुव प्रकृतिप्रमाण उदीरणा द्रव्य उपलब्ध होता है; क्योंकि ये दोनों प्रकृतियाँ ध्रुवबन्धी हैं । किन्तु वेदके भागको देखते हुए प्रकृतिविशेषके कारण विशेष ही है। ऐसा होते हुए भी भय और जुगुप्सा इन दोनोंका भी द्रव्य उनमें से किसी एकरूप से उदीर्यमाण उपलब्ध होता है, क्योंकि स्तिवुकसंक्रमके कारण उनका एक-दूसरे में प्रवेश कराकर उत्कृष्ट स्वामित्वका अवलम्बन लिया है। इस प्रकार प्राप्त होता है ऐसा जान कर यद्यपि वेद भाग वहाँ एक द्रव्यको देखते हुए प्रकृतिविशेषके कारण अभ्यधिक है तो भी दोनोंके प्रगाढ़ द्रव्यसमुदायसे विशेष हीन ही है, क्योंकि कुछ कम अर्धमात्र द्रव्यरूपसे हीनपना देखा जाता है । इसलिए कुछ कम दूने प्रमाणरूप होनेसे यह द्रव्य विशेषाधिक है यह सिद्ध हुआ । i