Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
२९१. सुगममेदं सामित्त मेदाभावे वि पयडिविसेसमस्सियूण विसेसाहियत्तुव
भादो ।
* अणंताणुबंधीणं जहणिया पदसुदीरणा अण्णदरा तुल्ला विसेसाहिया ।
$ २९२. एत्थ वि कारणमणंतरपरूविदमेव दट्ठव्वं ।
* सम्मामिच्छत्तस्स जहरिणया पद सुदीरणा असंखेज्जगुणा । $ २९३. कुदो ? मिच्छाइट्ठिसंकिलेसं पेक्खियूणाणंतगुणहीण सम्मामिच्छाइट्ठिसंकिले सपरिणामेणुदीरिजमाणासंखेज लोगपडिभागियदव्वस्स गहणादो ।
२९८
* सम्मत्तस्स जहण्णिया पद सुदीरणा असंखेज्जगुणा ।
$ २९४. कुदो ? सम्मामिच्छाइट्ठिसंकिलेसादो अनंतगुणहीण सम्माइद्विसंकिलेसपरिणामेणुदीरिज माणदव्वग्गहणादो ।
दुगंछाए जहरिणया पर्व सुदीरणा अनंतगुणा ।
$ २९५. कुदो १ देसघादिपडिभागियत्तादो । तदो जइ वि मिच्छाइट्ठिसंकिलेसेण जहणा जादा तो विपुव्विल्लादो एसा अनंतगुणा त्ति सिद्धं ।
भयस्स जहणिया पद स दीरणा विसेसाहिया ।
$ २९१. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि स्वामित्वभेदका अभाव होनेपर भी प्रकृतिविशेषका आश्रयकर विशेष अधिकपना उपलब्ध होता है ।
* उससे अनन्तानुबन्धियोंमेंसे अन्यतर प्रकृतिकी जघन्य प्रदेश उदीरणां परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणी है ।
$ २९२. यहाँ पर भी अनन्तर पूर्व में ही कहा गया कारण जानना चाहिए ।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है ।
२९३. क्योंकि मिथ्यादृष्टिके संक्लेशको देखते हुए सम्यग्मिथ्यादृष्टि के अनन्तगुणहीन संक्शरूप परिणामसे उदीर्यमाण द्रव्यका यहाँ पर ग्रहण किया है जो असंख्यात लोकका भाग देने पर एक भागप्रमाण 1
* उससे सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है ।
$ २९४. क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टिके संक्लेशसे सम्यग्दृष्टिके अनन्तगुणहीन संक्लेशपरिणाम उदीर्यमाणद्रव्यका ग्रहण किया है ।
* उससे जुगुप्साकी जघन्य प्रदेश उदीरणा अनन्तगुणी है ।
$ २९५. क्योंकि इसका कारण देशघातिप्रतिभागीपना है । इसलिए यद्यपि मिथ्या दृष्टिके संक्केशसे जघन्य हो गया है तो भी पूर्वकी प्रकृतिके उदीरणाद्रव्यसे यह अनन्तगुणा है यह सिद्ध हुआ ।
* उससे भयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है ।