Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए अप्पाबहुअं कीरमाणे भय-दुगुंछाणमणुदयो वत्तव्यो । एवं च संते हस्स-रदीणमुदए संजादे सोगदव्वेण सह दुगुंछादव्वं हस्सस्स थिवुक्कसंकमेण गच्छदि । अरदिदव्वेण सह भयदव्वं रदीए आगच्छदि । एवमरदिसोगाणं पि उदये संजादे हस्सदव्वं दुगुछादव्वं च सोगस्सागच्छदि । रदिदव्वं भयदव्वं च अरदीए आगच्छइ । एवमागच्छदि त्ति कादूण पुग्विल्लदुगुछदव्वं संपहियदुगुंछदव्वं च दो वि सरिसाणि भवति । पुव्विल्लभयदव्वादो वुण संपहियहस्ससोगदन्चमावलि० असंखे०भागपडिभागियपयडिविसेसदव्वेणब्भहियं होइ, तेण भय-दुगुछाणमुदीरणादो हस्स-सोगाणमुदीरणा अण्णदरा सत्थाणेण समाणा होदूण विसेसाहिया होदि त्ति भणिदा।
* रदि-अरदीणमुक्कस्सिया पदेस दोरणा विसेसाहिया ।।
$२६९. केत्तियमेत्तेण ? पयडिविसेसदव्यमेत्तेण । तं कधं ? हस्स-सोगदव्वादो रदि-अरदिदव्वं पयडिविसेसेणावलि. असंखे०भागपडिभागेणब्भहियं होदि। पुणो दुगुछादव्वादो भयदव्यमावलि. असंखेजभागपडिभागिएण पयडिविसेसेणब्भहियं होइ । तदो दोहिं आवलिएहिं असंखेजभागपडिभागियदव्वेहिं विसेसाहियत्तमेत्थ दट्टव्वं । शोकके द्रव्यके साथ जुगुप्साका द्रव्य हास्यको स्तिवुकसंक्रमण द्वारा प्राप्त होता है और अरति. के द्रव्य के साथ भयका द्रव्य रतिको प्राप्त होता है। तथा इसी प्रकार अरति और शोकके भी उदय होनेपर हास्यका द्रव्य और जुगुप्साका द्रव्य शोकको प्राप्त होता है और रतिका द्रव्य तथा भयका द्रव्य अरतिको प्राप्त होता है। इस प्रकार प्राप्त होता है ऐसा जानकर पहलेका जुगुप्साका द्रव्य और वर्तमान जुगुप्साका द्रव्य दोनों भो सदृश होते हैं। किन्तु पहलेके भयके द्रव्यसे वर्तमान हास्य और शोकका द्रव्य आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण प्रतिभागसे प्राप्त प्रकृति विशेषके द्रव्यसे अधिक होता है, इसलिए भय और जुगुप्साकी उदीरणासे हास्य और शोककी अन्यतर उदीरणा स्वस्थानकी अपेक्षा समान होकर विशेष अधिक होती है यह कहा है।
* उससे रति और अरतिकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है । $ २६९. शंका-कितनी अधिक है ? सामाधान-प्रकृति विशेष द्रव्यमात्र अधिक है। शंका-वह कैसे ?
समाधान-हास्य और शोकके द्रव्यसे रति और अरतिका द्रव्य प्रकृति विशेष होने के कारण आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण प्रतिभाग द्वारा जितना प्राप्त हो उतना अधिक है । तथा जुगुप्साके द्रव्यसे भयका द्रव्य प्रकृति विशेष होनेके कारण आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण प्रतिभाग द्वारा जितना प्राप्त हो उतना अधिक है। इसलिए दो आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण प्रतिभागों द्वारा जितना द्रव्य प्राप्त हो उतना विशेष अधिक है ऐसा यहाँ जानना चाहिए।