Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२) उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण अंतरं
२६९ २०३. जह० पयदं । दुविहो णिदेसो-ओपेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपय० जह० पदेसुदी० जह० एगस०, उक० आवलि० असं०भागो । अजह० सव्वद्धा । णवरि सम्मामि० अजह. जह. अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । सव्वणिरयसव्यतिरिक्ख-सव्वदेवा ति जाओ पयडीओ उदीरिजंति तासिमोघं ।
२०४. मणुसतिये सम्म० जह० पदे० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । अजह० सव्वद्धा । एवं सम्मामि० । णवरि अजह० जह० उक्क०' अंतोमु० । सेसपय० जह० पदे. जह० एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो। अजह. सव्वद्धा । मणुसअपज० सव्वपय० जह० पदे० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । अजह० जह० एगस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो । एवं जाव० । ।
$ २०३. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यात भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेपता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सब नारकी, सब तिर्यञ्च और सब देव जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा करते हैं उनका भंग ओघके समान है।
विशेषार्थ-सब प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जो स्वामी बतलाया है उसके अनुसार उनके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण बन जानेसे वह तत्प्रमाण कहा है। इनके अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। मात्र सम्यग्मिथ्यात्व गुण सान्तर मार्गणा है, इसलिए इस गुणके जघन्य और उत्कृष्ट कालको ध्यानमें रखकर इनके अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
२०४. मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार संम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियों के जघन्य प्रदेश उदीरको का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाले मनुष्य अधिकसे अधिक संख्यात ही हो सकते हैं। यतः ऐसे जीव कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक संख्यात समय तक हो इसकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करते हैं, इसलिए इसके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय
१. ता प्रतौ जह० एगस० उक्क० इति पाठः ।