Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं असंखे गुणही । एवं सम्मामि । णवरि अणंताणु० चउक्कं णत्थि । सम्म० तिरिक्खोघं ।
२४१. अणंताणु०कोध० उक्क० पदे. उदीरेंतो तिण्हं कोधाणं णिय० असंखे०गुणहीणा । अट्ठणोक० सिया असंखे०गुणही० । एवं तिण्हं कसायाणं ।
$ २४२. अपचक्खाणकोध० उक्क० पदे० उदी. दोण्हं कोधाणं णिय० तं तु चउट्ठाणप० । अट्ठणोक० सिया तं तु चउट्ठा० । सम्म० सिया असंखे०गुणही० ॥ एवमेकारस।
२४३. इत्थिवेद० उक्क० पदे० उदी० सम्म० सिया असंखेगुणही० । बारसक०-छण्णोक० सिया तं तु चउट्ठाण'। एवं पुरिसवे० ।
६२४४. हस्स० उक्क० पदे० उदी० सम्म० इत्थिवेदभंगो । बारसक०-दो वेदध्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरक अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उदीरणा नहीं करता । सम्यक्त्वको मुख्यकर सन्निकर्षका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है।
$ २४१. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला देव तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक है, जो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
२४२. अप्रत्याख्यान क्रोधकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला देव दो क्रोधोंका नियमसे उदीरक है । जो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्ट की अपेक्षा चतुःस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यान मान आदि ग्यारह कषायोंको मुख्य कर सन्नि कर्ष जानना चाहिए। ___६२४३. स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला देव सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है
और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टको अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतु:स्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार पुरुषवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
६२४४. हास्यकी. उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाले देवके सम्यक्त्वका भंग स्त्रीवेदको मुख्यकर कहे गये सम्यक्त्वके सन्निकर्षके समान है। बारह कषाय और दो वेद, भय
१. आ०-ता प्रत्योः छट्ठाण० इति पाठः।