Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ १८३. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० पदे. केव० पोसिदं ? खेत्तं । अणुक० पदेसुदी लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । सम्म०-सम्मामि० उक्क० अणुक्क० पदेसुदी० खेत्तं । एवं विदियादि सत्तमा ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तभंगो। भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, अतः वह तत्प्रमाण कहा है। इसी प्रकार शेष बारह कषाय और सात नोकषायोंका उक्त स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए, क्योंकि इनकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाके जो स्वामी हैं उनका इतना ही स्पर्शन प्राप्त होता है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदे श उदीरक जीव सर्व लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन है यह स्पष्ट ही है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय यथास्थान होती है, इसलिए इसके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान और अतीत स्पर्शन क्षेत्रके समान लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे वह तत्प्रमाण कहा है। यतः वेदक सम्यग्दृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है तथा विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है, अतः इसके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असं. ख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है, अतः सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका दोनों प्रकारका स्पर्शन उक्तप्रमाण बन जानेसे उस प्रकार कहा है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा क्षपकश्रेणिमें यथास्थान होती है, अतः क्षपकोंके अतीत और वर्तमान स्पर्शनको ध्यानमें रख कर उक्त दोनों वेदोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान और अतीत स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और अतीत स्पर्शन वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग तथा मारणान्तिक और उपपाद पदकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण है, इसलिए इन दोनों वेदोंके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है।
$ १८३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? क्षेत्रके समान स्पर्शन है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिए। पहली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-द्वितीयादि पृथिवियोंमें एक तो मरकर सम्यग्दृष्टियोंकी उत्पत्ति नहीं होती; दूसरे छटी पृथिवी तकके जो सम्यग्दृष्टि नारको मरण करते हैं वे मनुष्य पर्याप्तकोंमें ही उत्पन्न होते हैं, तीसरे सातवें नरकके जो सम्यग्दृष्टि हैं वे नियमसे मिथ्यादृष्टि हो कर ही मरण करते हैं, इसलिए तो सामान्यसे नारकियोंमें और द्वितीयादि नरकके नारकियोंमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । इनमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदी