Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ छ चोदस० । अजह० सव्वलोगो । सम्म० जह० खेत्तं । अजह लोग० असंखे० भागो छ चोदस० । सम्मामि० खेत्तं । इथिवेद-पुरिसवेद० जह० पदे० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । अजह० लोग० असं०भागो सव्वलोगो वा।
१९४. पंचिंदियतिरिक्खतिये सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खोघं । सेसपय० जह० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० देसूणा । अजह० पदे लोग. असंखे०भागो सव्व. लोगो वा । पंचिं०तिरिक्ख अपज०-मणुसअपज. सव्वपय० जह० अजह० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा।
१९५. मणुसतिये सम्म०-सम्मामि० खेत्तं । सेसपय. जह० पदे० लोग० असंखे०भागो । अजह० लोग० असं०भागो सव्वलोगो वा । उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण
का स्पर्शन किया है अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालोके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके जघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सामान्य तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणा नीचे सातवीं पृथिवी तक मारणान्तिक समुद्धात करते समय बन जाती है, इसलिए यहाँ इनके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह यटे चौदह भागप्रमाण कहा है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदके जघन्य प्रदेश उदीरकोंकी अपेक्षा उक्त स्पर्शन जानना चाहिए । शेष कथन सुगम है।
१९४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और वसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेपार्थ-पूर्वमें सामान्य तिर्यञ्चोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष प्रकृतियों के जघन्य प्रदेश उदीरकोंके स्पर्शनका जो स्पष्टीकरण किया है वह पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिककी अपेक्षा ही घटित होनेसे इसे उक्त प्रकारसे समझ लेना चाहिए। इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण बन जानेसे यहाँ उक्त प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन उक्त रूपसे कहा है । शेष कथन सुगम है।
$ १९५. मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।