Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
$ ३९. आदेसेण रइय० मोह० जह० अजह० पदे० लोग० असंखे ० भागो छ चोद्दस भागा देणा । एवं विदियादि सत्तमा त्ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तभंगो ।
$ ४०.
तिरिक्खेसु मोह० जह० पदे० लोग० असंखे ० भागो छ चोदस० । अजह० सव्वलोगो । पंचि०तिरिक्खतिये मोह० जह० लोग० असंखे० भागो छ चोद्दस० । अजह० लोग० असं०भागो सव्वलोगो वा । पंचिं० तिरि० अपज्ज० - मणुसअपज० मोह ० ० जह० अजह० पदे० लोग० असं० भागो सव्वलोगो वा ।
असं० भागो सव्वलोगो
चोदस० । भवण०
अट्ठा वा अट्ठ णव
$
४१. मणुसतिये मोह० जह० खेत्तं । अजह० लोग ० वा । देवेसु मोह० जह० अजह० लोग० असंखे० भागो अट्ठ णव वाणवेंतर - जोदिसि० मोह० जह० अजह० लोग० असंखे० भागो
विशेषार्थ — ओघ से मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा सर्व संक्लिष्ट और तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट जीवके होती है, ऐसे जीव देव भी होते हैं और मनुष्य या तिर्यञ्च भी हो सकते हैं । देवोंमें विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण स्पर्शनं बन जाता है । तथा तिर्यञ्च या मनुष्यों में मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा त्रास नालीके चौदह भागों में से कुछ कम तेरह भागप्रमाण स्पर्शन बन जाता है । इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । यह ओघसे मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंका स्पष्टीकरण है ।
$ ३९. आदेश से नारकियोंमें मोहनीयके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्र के समान स्पर्शन है
४०. तिर्यञ्चों में मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीय के जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ ४१. मनुष्यत्रिक मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंके स्पर्शनका भंग क्षेत्रके समान है । अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवों में मोहनीय के जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकों ने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मोहनीयके जघन्य और