Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधंवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
वो तस्स पदुकस्ससामित्तं होइ । कुदो १ तस्स समयाहियावलियमेत्तगुण सेढि - गोच्छाणं चरिमट्ठिदीदो उदीरिजमाणाणमसंखेजाणं समयपबद्धाणं हेट्ठिमासेसपदेसुदीरणाहिंतो असंखेजगुणत्तदंसणादो । समयाहियावलिय अक्खीदंसणमोहणीयं मोतूण ट्ठा अणि किरणचरिमसमए पयदुक्कस्ससामित्तं दाहामो, तत्थतणाणियट्टिपरिणामस्स कदकरणिजुकस्सविसोहीदो वि अनंतगुणत्तदंसणादो । एत्थ परिहारो वुञ्जदे -- सच्चमेदमणियरिमपरिणामो बहुओ ति । किंतु एसो कदकरणिजो संकिलिस्सदु विसुज्झदु वा तो वि अंतोमुहुत्तमेत्तसगकालब्भंतरे असंखेजगुणमसंखेजगुणं दव्वमोकडिदूण समयं पड उदीरेदि । तम्हा विसयंतरपरिहारेणेत्थेव पयदसामित्तमवहारेयव्वमिदि ।
$ ७५. संपहि सम्मामिच्छत्तस्स पयदुकस्ससामित्तविसयावहारणडुमाह* सम्मामिच्छत्तस्स उक्कसिया पदेसुदीरणा कस्स ? $ ७६. सुगमं ।
* सम्मत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइट्ठिस्स सव्वविस द्धस्स । $ ७७, जो सम्माहिमुहो चरिमसमयसम्मामिच्छाइट्ठी सव्वविसुद्धो तस्स पयदुकस्ससामित्तं होइ । किं कारणं १ उक्कस्सविसोहिपरिणामेण विणा पदेसुदीरणाए उक्करसभावाणुववत्चीदो ।
समयप्रबद्धोंकी अधस्तन अशेष प्रदेश उदीरणासे असंख्यातगुणीं देखी जाती हैं। 1
शंका – हम एक समय अधिक एक आवलि कालसे युक्त अक्षीण दर्शनमोहीको छोड़ कर इसके पूर्व अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व देते हैं, क्योंकि वहाँका अनिवृत्तिकरण परिणाम कृतकृत्यकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे भी अनन्तगुणा देखा जाता है ? समाधान —यहाँ उक्त शंकाके परिहारका कथन करते हैं - यह सत्य कि अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी अन्तिम परिणाम विशुद्धिकी अपेक्षा बहुत है । किन्तु यह कृतकृत्य जीव क्लिष्ट हो अथवा विशुद्ध होओ तो भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अपने कालके भीतर असंख्यात - गुणे द्रव्यका अपकर्षण कर प्रत्येक समय में उसकी उदीरणा करता है, इसलिए विषयान्तरका परिहार कर यहाँ ही प्रकृत स्वामित्वका निश्चय करना चाहिए ।
७५. अब सम्यग्मिथ्यात्वके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वके स्थानका निश्चय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं—
* सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
$ ७६. यह सूत्र सुगम है ।
* सम्यक्त्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सर्व विशुद्ध सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है ।
$ ७७. जो सम्यक्त्वके अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्व विशुद्ध सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव है उसके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, क्योंकि उत्कृष्ट विशुद्धिरूप परिणामके बिना प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्टपना नहीं बन सकता ।