Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
* खवगस्स समयाहियावलियचरिमसमयणवु' सयवेदगस्स । ९४. समयाहियावलियमेत्तकालेण जो चरिमसमयणवुंसयवेदो भविस्सदि सो समयाहियावलियचरिमसमयणपुंसयवेदो ति भण्णदे | तस्स खवगविसेसणविसिट्ठस्स पयदुक्कस्ससामित्ताहिसंबंधो होइ, हेट्ठिमासेसपदेसुदीरणाणमेत्तो असंखेञ्जगुणहीणत्तदादो |
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* guणोकसायाणमुक्कस्सिया पवेसुदीरणा कस्स !
९५. सुगमं ।
* खवगस्स चरिमसमयअपुत्र्वकरणे वट्टमाणगस्स ।
९६. जो खवगो अण्णदरकम्मंसिओ तस्स चरिमसमयअपुव्यकरणे वट्टमाणगस्स पयदुक्कस्ससामित्तं होदिति सुत्तत्थसमुच्चयो ।
एवमोघेणुकस्ससामित्तं समत्तं ।
$ ९७. संपहि आदेसपरूवणमुच्चारणाणुगमे कीरमाणे ओघपुरस्सरं वत्तहस्सामो । तं जहा - सामित्तं दुविहं - जह० उक० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०- अनंताणु०४ उकस्सपदेसुदीरणा कस्स ! अण्णद० सव्वविद्धस्स संजमाहिमुहस्स चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स । सम्म० उक्क० पदेसुदी •
* जो समयाधिक एक आवलिकालके अन्तिम समय तक नपुंसकवेदी है उस क्षपकके होती है ।
$ ९४. समयाधिक आवलिमात्र कालके द्वारा जो अन्तिम समयवर्ती नपुंसकवेदी होगा वह समयाधिक आवलि-अन्तिम समयवर्ती नपुंसकवेदी कहलाता है । क्षपक विशेषणविशिष्ट उस क्षपकके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका अभिसम्बन्ध होता है, क्योंकि नीचेकी अशेष प्रदेश उदीरणाऐं इससे असंख्यातगुणी हीन देखी जाती हैं ।
* छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
$ ९५. यह सूत्र सुगम है ।
* अपूर्वकरण के अन्तिम समय में विद्यमान क्षपकके होती है ।
$ ९६. अन्यतर कर्मांशिक जो क्षपक है, अपूर्वकरंणके अन्तिम समय में विद्यमान उस क्षपकके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है यह सूत्रार्थसमुच्चय है ।
इस प्रकार ओघसे उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ |
$ ९७. अब आदेशका कथन करनेके लिए उच्चारणाका अनुगम करने पर ओघ पूर्वक बतलाते हैं । यथा—स्वामित्व दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्व विशुद्ध संयम अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके होती है । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? जो समयाधिक एक आवलि काल तक अक्षीण-दर्शनमोही है ऐसे अन्यतर कृतकृत्यवेदक होती