Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ * मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेसुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? $ १११. सुगममेदं पुच्छावकं । * जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ। $ ११२. कुदो ? संजमाहिमुहमिच्छाइद्विचरिमसमए चैव तदुवलंभादो । * अणुक्कस्सपदेसुवीरगो केवचिरं कालादो होदि ?
११३. सुगमं । * एत्थ तिणि भंगा।
६११४. एत्थाणुकस्सपदेसुदीरगकालणिद्देसावसरे तिणि भंगा दहव्वाअणादिओ अजवसिदो अणादिओ सपञ्जवसिदो सादिओ सपज्जवसिदो ति । तत्थादिन्लदुर्ग सुगमं । संपहि तदियवियप्पस्स जहण्णुकस्सकालावहारणट्ठमाह
* जहण्णण अंतोमुहु।
5 ११५. कुदो १ सम्मत्तादो मिच्छत्तमुवगंतूण सव्वजहणंतोमुहुत्तेण पडिणियत्तम्मि तदुवलद्धीदो।
* उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरिय। 5 ११६. कुदो १ अद्धपोग्गलपरियट्टादिसमये पढमसम्मत्तमुप्पाइय सव्वलहुं * मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका कितना काल है ? $ १११. यह पृच्छावाक्य सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
$ ११२. क्योंकि संयमके अभिमुख हुए मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समयमें ही उसकी उपलब्धि होती है।
* अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका कितना काल है ? ६ ११३. यह सूत्र सुगम है। * इस.विषयमें तीन भंग हैं। ...$ ११४. यहाँ अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकके कालका निर्देश करनेके विषयमें तीन भंग जानना चाहिए-अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । उनमेंसे आदिके दो भंग सुगम हैं । अब तीसरे विकल्पके जघन्य और उत्कृष्ट कालका निश्चय करनेके लिए कहते हैं
* जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है।
$ ११५. क्योंकि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त होकर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा प्रतिनिवृत्त होनेपर उसकी उपलब्धि होती है।
* उत्कृष्ट काल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। $ ११६. क्योंकि अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण कालके प्रथम समयमें प्रथम सम्यक्त्वको