Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ $१६८. तिरिक्खाणमोघं । णवरि मिच्छ-अणंताणु०४ अजह० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि । अट्ठक०-छण्णोक० अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । णवंस० अज० जह० एगस०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये । णवरि मिच्छ०-सोलसक०-छण्णोक० जह० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० पुरकोडिपुधत्तं । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० सगट्ठिदी देसूणा । तिण्हं वेदाणं जह० अजह० पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । णवरि पजत्त० इत्थिवेदो पत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णवूस० णत्थि । इत्थिवेद० अजह० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो।
१६८. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम है। आठ कषाय और छह नोकषायोंके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। नपुसकवेदके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। तीन वेदोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। तथा योनिनियोंमें स्त्रीवेदके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
विशेषार्थ कोई सम्यग्दृष्टि तिर्यश्च मरकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होता नहीं, इसलिए यहाँ उनमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य प्रदेश उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम बन जानेसे उक्तप्रमाण कहा है। तिर्यश्चों में प्रत्याख्यान कषायचतुष्क और संज्वलनकषायचतुष्क तथा छह नोकषायोंकी उदीरणा कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक नहीं होती, क्योंकि ये अधूवोदयी प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। एक तो भोगभूमियाँ जीव नपुंसकवेदी नहीं होते, दूसरे कर्मभूमिज तिर्यञ्चोंमें नपुंसकवेदका उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण ही बन सकता है, इसलिए इन दो तथ्योंको और इसके जघन्य प्रदेश उदीरणाके जघन्य कालको ध्यानमें रख कर यहाँ नपुंसकवेदके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूवकोटिपृथक्त्वप्रमाण कहा है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिककी उत्कृष्ट कायस्थिति यद्यपि पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है। परन्तु भोगभूमिमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका स्वामित्व नहीं बन सकता, इसलिए वहाँ उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम .