Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ $ १६६. जहण्णंतरं पि एदेणेव देसामासियसुत्तेण सूचिदमिदि तदुच्चारणं वत्तइस्सामो । तं जहा--जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-अणंताणु०४ जह० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । अजह० जह० एयसं०, उक्क० वेछावद्विसागरोवमाणि देसूणाणि । एवमट्ठक० । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० पुव्यकोडी देसूणा । एवं चदुसंज०छण्णोक० । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि हस्स-रदि० अजह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अरदि-सोगः अजह० जह० एगस०, उक्क० छम्मासं । एवं णवंस । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० पदेसुदी. जह० अंतोमु०, उक्क० उवड्डपोग्गलपरियढें । इत्थिवेद-पुरिसवेद० जह• अजह० पदेसुदीर० जह० एयस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा ।
$ १६६. इसी देशामर्षक सूत्र द्वारा जघन्य अन्तरकालका भी सूचन हो जाता है, इसलिए उसकी उच्चारणाको बतलावेंगे। यथा-जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो छयासठ सागरोपम है। इसी प्रकार आठ कषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। इसी प्रकार चार संज्वलन और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है इनके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसमें भी इतनी विशेषता है कि हास्य और रतिके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तेतीस सागरोपम है। अरति और शोकके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है।। . विशेषार्थ--ओघसे प्रत्येक प्रकृतिके जघन्य प्रदेश उदीरकका जो जघन्य स्वामित्व बतलाया है उसके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको तथा अपने-अपने उदय योग्य स्थानके अन्तरकालको ध्यानमें रखकर उक्त अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिए। उदाहरणार्थ मिथ्यात्व और नपुंसकवेदको जघन्य प्रदेश उदीरणा उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाले संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवके होती है । यतः इस जीवके ये परिणाम कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्तकालके