Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण अंतरं
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अरदि-सोग० [० हस्स - रदिभंगो । सहस्सारे अरदि-सोग० अणुक्क० देवोघं । भवण - वाणवें जोदिसि ० सम्म० उक्क० अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० सगट्ठिदी देणा । इत्थिवेद० उक्क० पदेसुदी० जह० एयग०, उक्क० तिष्णि पलिदो० देसूणाणि पलिदोबमसादिरे० प० सा० । अणुक्क० जह० रगस०, उक्क० आवलि० असंखे ०मागी । सोहम्मीसाण० इस्थिवेद० देवोघं । उवरि इत्थवेदो णत्थि ।
$ १६५. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म उक्क० अणुक्क० पदे० णत्थि अंतरं । बारसक० - सत्तणोक० उक्क० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० सगट्टिदी देणा । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि पुरिसवेद० अणुक्क० जह० एयस ०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । एवं जाव० ।
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कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति जाननी चाहिए । अरति और शोकका भंग हास्य और रतिके समान है । किन्तु सहस्रार कल्पमें अरति और शोकके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका भंग सामान्य देवोंके समान है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे कुछ कम तीन पल्योपम, साधिक एक पल्योपम और साधक एक पल्योपम है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ठ अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सौधर्म और ऐशान कल्पमें स्त्री वेदका भंग सामान्य देवोंके समान है । आगेके देवोंमें स्त्रीवेद नहीं है ।
विशेषार्थ – यहाँ देवों में नपुंसकवेद नहीं होता, इसलिए इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण बन जानेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । इतना अवश्य है कि जहाँ जो विशेषता है उसे समझकर यथास्थान अन्तरकाल घटित करना चाहिए |
$ १६५. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति - प्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ -- अनुदिश आदिके देवोंमें नियमसे सम्यग्दृष्टि जीव ही जन्म लेते हैं । तथा जो द्वितीय उपशम सम्यग्दृष्टि जीव मर कर वहाँ उत्पन्न होते हैं उनका उपशम सम्यक्त्वका काल पूरा होने पर नियमसे वेदक सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं और जो कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टियोंको छोड़कर अन्य वेदकं सम्यग्दृष्टि जीव वहाँ जन्म लेते हैं वे जीवन भर वेदक सम्यग्दृष्टि ही बने रहते हैं । यही कारण है कि इनमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकके अन्तरकालका निषेध किया है। शेष सब कथन स्पष्ट ही है ।