Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो
२३३ * एत्तो जहण्णपदेसुदीरगाणं कालो।
६ १३७. सुगममेदमहियारसंभालणसुत्तं' । तस्स दुविहो णिद्देसो ओघादेसभेदेण । तत्थोघपरूवणमुत्तरसुत्तमाह
* सव्वकम्माणं जहण्णपदेसुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? ११३८. सुगमं । * जहण्णण एगसमओ।
६१३९. तं कथं ? सण्णिमिच्छाइट्ठी उक्कस्ससंकिलेसेण परिणमिय एगसमयजहण्णपदेसुदीरगो जादो। पुणो विदियसमए अजहण्णभावेण परिणदो। लद्धो सम्वेसिं कम्माणं जहण्णपदेसुदीरगकालो जहण्णेणेयसमयमेत्तो ।
___ * उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो। है उसकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय बन जाता है। यथा द्वितीयादि नरकोंके नारकी,योनिनी तिर्यश्च तथा भवनत्रिक देव । मात्र मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकके जघन्य कालमें कुछ विशेषता है। बात यह है कि दर्शनमोहनीयको क्षपणाका प्रारम्भ मनुष्यगतिमें ही होता है, इसलिए तो सामान्य मनुष्य और मनुष्यिनियोंमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्तसे कम नहीं बनता, अतः इनमें वह उक्तप्रमाण कहा है। अब रहे मनुष्य पर्याप्त सो जो मनुष्यनी जीव सम्यक्त्वकी उदोरणामें दो समय काल शेष रहने पर कृतकृत्यवेदका सम्यक्त्वके साथ उत्तम भोगभूमिके मनुष्य पर्याप्तकोंमें उत्पन्न होता है उसकी अपेक्षा मनुष्य पर्याप्तकोंमें सम्यक्त्वको अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय बन जानेसे वह उक्तप्रमाण कहा है! शेष कथन सुगम है।
* इससे आगे जघन्य प्रदेश उदीरकोंके कालका अधिकार है।
६ १३७. अधिकारकी सम्हाल करने वाला यह सूत्र सुगम है। उसका निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* सब कर्मोंके जघन्य प्रदेश उदीरकका कितना काल है ? $ १३८. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है ।
$ १३९. वह कैसे ? संज्ञी मिथ्यादृष्टि उत्कृष्ट संक्लेशरूपसे परिणम कर एक समय तक जघन्य प्रदेश उदीरक हो गया । पुनः दूसरे समयमें अजघन्य रूपसे परिणत हुआ । इस प्रकार सब कर्मोके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समयमात्र प्राप्त हुआ।
* उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। .
१. आता प्रत्योः -सुत्तभेदं इति पाठः ।
२०