Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ १४०. कुदो ? जहण्णपदेसुदीरणकारणपरिणामेसु असंखेजलोगमेत्तेसु उक्कस्सेणवट्ठाणकालस्स एगजीवविसयस्स तप्पमाणत्तोवलंभादो ।
* अजहण्णपदेसुवीरगो केवचिरं कालावो होदि ?
$१४१. सुगमं । * जहण्णेण एयसमओ ?
5 १४२. कुदो ? जहण्णपदेसुदीरणादो एगसमयमजहण्णभावमुवणमिय पुणो विदियसमये जहण्णभावेण परिणदम्भि सव्वेसिमेगसमयमेत्तजहण्णकालोपलंभादो।
* उक्कस्सेण पयडिउदीरणाभंगो। ____१४३. कुदो ? मिच्छत्त-णसयवेदाणमजहण्णपदेसुदी० उक्क० . अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा इञ्चादिणा मेदाभावादो। 'संपहि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तणं वि एदम्मि जहण्णाजहण्णपदेसुदीरगकालणिद्देसे अविसेसेण पसत्ते तत्थ विसेसपरूवणट्ठमाह
* णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहण्णपदेसुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ?
१४४. सुगमं ।
$ १४०. क्योंकि जघन्य प्रदेश उदीरणाके कारणभूत असंख्यात लोकप्रमाण परिणामोंमें एक जीव विषयक उत्कृष्ट अवस्थान काल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है।
* अजघन्य प्रदेश उदीरकका कितना काल है ? $ १४१. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
$ १४२. क्योंकि जघन्य प्रदेश उदीरणाके बाद एक समय तक अजघन्य भावको प्राप्त होकर पुनः दूसरे समयमें जघन्यभावसे परिणत होने पर सभी कोका जघन्य काल एक समयमात्र उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट कालका भंग प्रकृति उदीरणाके समान है ।
६१४३. क्योंकि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदको अजघन्य प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनोंके बराबर है इत्यादिरूपसे प्रकृति उदीरणाके उत्कृष्ट कालसे प्रकृत उत्कृष्ट कालमें कोई भेद नहीं है। अब सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके भी इस जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरणाके कालके कथनके बिना भेदके प्राप्त होने पर उनके कालमें जो विशेषता है उसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेश उदीरकका कितना काल है ?
$ १४४. यह सूत्र सुगम है।