Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ सादिरेयाणि । सम्म० जह० पदेसुदी० जह उक्क० एयस० । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० छावट्ठिसागरो० देसूणाणि । सम्मामि० जह० पदेसुदी० जह• उक्क० एगस० । अजह० जह० उक्क० अंतोमु० ।
१४८. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-णवुस०-अरदि-सोग० जह० पदेसुदी० जह• एगस०, उक्क० आबलि० असंखे०भागो। अजह० जह• एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि! एवं सोलसक०-हस्स-रदि-भय-दुगुंछ । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । सम्म० जह० पदेसुदी० जह० उक्क० एगस० । अजह. जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । सम्मामि० ओघं । एवं सत्तमाए । णवरि सम्म० अजह० जह• अंतोमु० । एवं पढमादि जाव छट्टि त्ति । णवरि अरदि-सोग० हस्सभंगो । पढमाए सम्म० अजह० जह• एयस० ।
१४९. तिरिक्खेसु मिच्छ०-णस० ओघं । सम्म० जह० पदेसुदी० जह. उक्क एगस० । अजह० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । सम्मामि०-सोलसक०-छण्णोक० पढमपुढविभंगो। इत्थिवेद-पुरिसवेद० जह. घन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल हास्य और रतिका छह महीना तथा अरति और शोकका साधिक तेतीस सागरोपम है। सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागरोपम है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है।
$ १४८. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, अरति और शोकके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है। इसी प्रकार सोलह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है। सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्महर्त है। इसी प्रकार पहली पथिवीसे लेकर छटी प्रथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अरति और शोकका भंग हास्यके समान है। पहली पृथिवीमें सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है।
$ १४९. तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका भंग ओघके समान है। सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेश-उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्योपम है। सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंका भंग पहली पृथिवीके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके